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स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ
6.7.168 आर्या दीपां (19वीं सदी) ___रिषी चौथमलजी रचित 'रोहिणी तप की ढाल' आर्या दीपा की शिष्या ने जालोर में लिखी। प्रति आ. सुशीलमुनि आश्रम नई दिल्ली में है।
6.7.169 आर्या दीपा (19वीं सदी)
'खण्डा-जोयणा' की लिपिकर्ता 19वीं सदी में रूपा आर्या की शिष्या दीपा आर्या थीं। प्रति जयपुर संग्रह में है।532
6.7.170 आर्या रूपां ( 19वीं सदी)
'छह ढाले उपदेशी' की प्रति 19वीं सदी में रूपां आर्या ने लाखेरी स्थान में लिपि की।33 19वीं सदी की रूपां आर्या की 'काय स्थिति द्वार बोल' की पांडुलिपि शेरपुर में लिखित प्राप्त हैं। यह प्रति जयपुर संग्रह में है।534
6.7.171 आर्या मया ( 19वीं सदी)
अजबांजी की शिष्या मयाजी ने पालि में ज्येष्ठ शु 13 को 'अंजना सती रास' की प्रतिलिपि की। यह प्रति आ. सुशील मुनि आश्रम, नई दिल्ली (परि. 90/252) में है।
6.7.172 आर्या सीता ( 19वीं सदी)
'नवतत्त्व का थोकड़ा' की प्रतिलिपिकार के रूप में उल्लेख है। प्रति आ. सुशील मुनि आश्रम नई दिल्ली (परि. 90/439) में है।
6.7.173 आर्या जयदेवीजी (19वीं सदी)
___ आर्या जयकारीजी की शिष्या सुखदेईजी उनकी शिष्या जयदेवीजी द्वारा प्रतिलिपिकृत 'देवकी की ढाल' आ. सुशील मुनि आश्रम में है। यह पांडुलिपि जिहानाबाद में लिखी गई थी। 6.7.174 आर्या जोगमाया ( 19वीं सदी)
ऋषि नंदलालजी रचित 'रूक्मिणी रास' (रचना, सं. 1872 होश्यारपुर) की प्रतिलिपि लाजवंती की शिष्या सती जोगमाया द्वारा लिखी गई प्राप्त होती है। प्रति आ. सुशीलमुनि आश्रम नई दि. परि. 90/547) में है।
6.7.175 आर्या नानीजी (19वीं सदी)
श्री हीराचंदजी महाराज की अंतेवासिनी शिष्या नानीजी के पठनार्थ 'नमिराजर्षि' की प्रतिलिपि की गई। प्रति आ. सुशील मुनि आश्रम नई दिल्ली में है। 532. राज. हिं. ह. ग्रं. सू. भाग 6, क्र 782, ग्रं. 7185 533. राज. हिं. ह. ग्रं. सू. भाग 5, क्र. 1526 ग्रं. 6170 534. वही, भाग 6, क्र. 779 ग्रं. 7986
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