________________
तेरापंथ परम्परा की श्रमणियाँ
से अग्रगामी होकर आप धर्म का अच्छा प्रचार-प्रसार कर रही हैं। आपने लगातार 12 चातुर्मास अहमदाबाद में किये। आचार्य महाप्रज्ञजी ने आपको कला के क्षेत्र में श्रेष्ठ कार्य करने के कारण 'शासन श्री' का संबोधन प्रदान किया।
7.11.34 श्री कंचनकंवरजी 'लाडनूं' (सं. 2005-वर्तमान) 9/225 ___आपका जन्म श्री महालचंदजी खटेड के यहां सं. 1990 में हुआ, आप भी चैत्र शु. 11 को श्री रामकुंवरजी के साथ दीक्षित हुईं। आगम-बत्तीसी के ज्ञान के साथ आपने प्राकृत में 'पाइय कहाओ' लिखी तथा प्राकृत भाषा एक विश्लेषण, आचार्य श्री तुलसी एवं आचार्य श्री महाप्रज्ञ पर शोध-निबंध लिखा। आपने सूक्ष्माक्षरों के कई पन्ने लिखे, साथ ही इंजेक्शन देना एवं आंखों का ऑपरेशन जैसे कार्य भी कर लेती हैं। एक जैन साध्वी अपने हाथों से सर्जरी तक करने की क्षमता रखती है, यह जैन साध्वी इतिहास का एक अद्वितीय पृष्ठठ है। 7.11.35 श्री लिछमांजी 'गंगाशहर' (सं. 2006-स्वर्गस्थ 2057-60 के मध्य) 9/230
संवत् 1982 को श्री भैरुदानजी डागा के यहां आपका जन्म हुआ। आपने भरे-पूरे परिवार व सप्तवर्षीय पुत्र को छोड़कर 24 वर्ष की वय में अपने पति श्री फतेहचंदजी के साथ कार्तिक कृ. 8 को जयपुर में दीक्षा ग्रहण की। आपके समय में लाडनूं में 'पारमार्थिक शिक्षण संस्था' प्रारंभ हुई। आप एवं आपके पति इस संस्था में 6 मास रहकर साधना व शिक्षा में आगे बढ़े, एवं संस्था के प्रथम शिक्षार्थी व प्रथम दीक्षार्थी कहलाने का सौभाग्य प्राप्त किया। 7.11.36 श्री प्रमोदश्रीजी 'पड़िहारा' (सं. 2006-56) 9/232
बीदासर में आपका जन्म सं. 1986 लिंगा गोत्र के श्री जेठमलजी के यहां हुआ, पति के स्वर्गवास के पश्चात् आप भी श्री लिछमाजी के साथ जयपुर में दीक्षित हुईं। आप कला कुशल थीं। आपकी कलात्मक कृतियों की एक लंबी सूची प्राप्त होती है, जिसमें 51 रजोहरण, 41 प्रमार्जनी, चित्राम की 7 प्रतियां (एक-दो प्रति में 30-40 पन्ने), 6 चश्मों के फ्रेम, दंतकुरेदनी आदि के 25 झूमके 5 खरल, 15 प्याले, सूत की अनेक मालाएं, प्रदर्शनी की तीन पेटियां 500 लिपिबद्ध पन्ने आदि प्रमुख हैं। सिलाई की परीक्षा में आपने प्रथम स्थान लिया। आप आचारनिष्ठ तपस्विनी व सहिष्णु थीं। उपवास से नौ दिन तक लड़ीबद्ध तप किया, अंत में चार दिन के चौविहारी अनशन के साथ स्वर्ग की ओर प्रस्थित हुईं। 7.11.37 श्री नगीनाश्रीजी 'टाड़गढ़' (सं. 2006-वर्तमान) 9/234
आप जगरुपमलजी पीतलियां की सुपुत्री हैं, आप भी जयपुर में दीक्षित हुईं। आप आगमज्ञाता एवं अनेक भाषाओं में प्रवीण हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकें-(1) पथ और पथिक, (2) जिन्दगी की तलाश, (3) विनयमूर्ति साध्वी भत्तू जी, (4) जलती चीराग आदि हैं। आपकी पुस्तक 'पथ व पथिक' सं. 2016 में प्रकाशित हुई जो साध्वी समाज में सर्वप्रथम थी। आप अग्रणी होकर संवत् 2020 से दूरवर्ती क्षेत्रों में धर्म जागृति के सुंदर कार्यक्रम कर जिनशासन को चमका रही हैं। 7.11.38 श्री जतनकंवरजी 'सरदार शहर' (सं. 2006-वर्तमान) 9/235
आपका जन्म इन्द्रचन्द्रजी दूगड़ के यहां संवत् 1991 में हुआ। आप भी 15 वर्ष की उम्र में जयपुर में आचार्य तुलसीजी के द्वारा दीक्षित हुईं। आपने आगम, टीका, भाष्य सहित कई. बार आगमों का पारायण किया। हिंदी,
sss
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org