Book Title: Jain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Author(s): Vijay Sadhvi Arya
Publisher: Bharatiya Vidya Pratishthan

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Page 1024
________________ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org 962 क्रम सं दीक्षा क्रम साध्वी नाम 214. 255 258 215. 216. 217. 218. 219. 220. 221. 222. 223. 224. 225. 226. 259 260 261 262 264 265 267 268 270 271 273 श्री विजयकंवरजी ० श्री अकल कंवरजी 4 श्री राजवतीजी 4 श्री सुमति कुमारीजी O श्री भानुकंवरजी 1987 सरदार शहर सुमेरमलजी पीचा 4 श्री पुण्यश्रीजी श्री मदनश्रीजी जन्मसंवत् स्थान 1991 छापर 1985 सांचोर श्री विमल श्रीजी श्री भागवतीजी 1990 डूंगरगढ़ 1990 लाडनूं 1991 लाडनूं 1991 बीदासर श्री मैणरयाजी 1992 केसूर 1993 गंगाशहर 1993 डूंगरगढ़ पिता - नाम गोत्र झूमरमलजी नाहटा जुगराजजी भंडारी मेघराजजी सामसुखा तिलोकचंदजी बोर श्री चंद्रकलाजी 1990 हिसार दीक्षा संवत् तिथि दीक्षा स्थान 2008 मा. शु. 13 2009 का. कृ. 9 2009 का. कृ. 9 श्री वसुमतीजी 1988 सरदारशहर फतेहचंदजी दूगड़ 2009 का. कृ. 9 2009 का. कृ. 9 हरखचंदजी पगारिया 2009 का. कृ. 9 इन्द्रचंदजी बैद 2009 का. कृ. 9 ज्ञानमलजी बम्बोरी 2009 का. कृ. 9 2009 का. कृ. 9 भैंरुदानजी डागा लूनकरणजी सिंघी 2009 पौ. शु. 13 2009 मा. शु. 9 श्री जसवतीजी 1990 सरदारशहर महालचंदजी नाहटा 2009 मा. शु. 9 गोपीरामजी मित्तल 2009 फा. शु. 13 सरदारशहर सरदारशहर सरदारशहर सरदारशहर सरदारशहर सरदारशहर सरदारशहर सरदारशहर सरदारशहर डूंगरगढ़ सरदारशहर सरदारशहर लूनकरणसर विशेष विवरण ज्ञान-आगम, स्तोक, संस्कृत, साहित्यिक ग्रंथ आगम, स्तोक, संस्कृत, संघीय साहित्य का ज्ञान, उपवास हजारों, बेले 200, 11 तक क्रमबद्ध तप एक 15 ज्ञान- आगम, स्तोक आदि, 21 तक अवधान प्रयोग आगम, स्तोक ज्ञान आगम, स्तोक ज्ञान 10 वर्ष से दो मास एकांतर उपवास संवत् 2018 से गण मुक्त कतिपय स्तोक, व्याख्यान कंठस्थ, कुल उपवास संख्या 381, दस प्रत्याख्यान 4 बार ज्ञान-आगम, स्तोक, संस्कृत आदि, कलादक्ष, उपवास संख्या 1159 संवत् 2027 गण से पृथक् ज्ञान- आगम, स्तोक, संस्कृत आदि, सृजनव्याख्यान, परिसंवाद, सैकड़ों गीत, संवत् 2029 से अग्रणी, उपवास संख्या 596 ज्ञान-आगम, स्तोक, संस्कृत आदि, विशिष्ट कलादक्ष, तप संख्या 1082 ज्ञानस्तोक, आगम, लिपि कुशल, तप संख्या 1701 आगम साहित्य का ज्ञान, 'अनामिका' पुस्तक प्रकाशित, सावन-भादवा एकांतर, अढ़ाई सौ प्रत्याख्यान 3 बार जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास

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