Book Title: Jain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Author(s): Vijay Sadhvi Arya
Publisher: Bharatiya Vidya Pratishthan
View full book text
________________
Jain Education International
तेरापंथ परम्परा की श्रमणियाँ
251.
।
For Private & Personal Use Only
19651
क्रम संदीक्षा क्रम| साध्वी-नाम जन्मसंवत् स्थान पिता-नाम गोत्र दीक्षा संवत् तिथि | दीक्षा स्थान | विशेष-विवरण 250. |302 श्री सुप्रभाजी 1995 डूंगरगढ़ ऋषभचंदजी छाजेड़ 2014 का. कृ.9 | सुजानगढ़ सूत्रवाचन, 300 गाथाओं का प्रतिदिन
स्वाध्याय,सेवाभाविनी 303
श्री उज्जवल 1995 सिसाय चन्द्रभाणजी सींगल | 2014 का. कृ.9 | सुजानगढ़ | ज्ञान-सूत्र, स्तोक, संस्कृत, तप के दिन | कुमारीजी
532,स्फुटकर तप,संवत् 2054 से अग्रणी 252. | 304 श्री कुमुदश्रीजी |1995 राजगढ़ | बालमुकुन्द सुराणा | 2014 का. कृ.१ | सुजानगढ़ | ज्ञान-सूत्र,स्तोक, संस्कृत, विविध भाषाओं
में सैकड़ों गीत रचे, तप के दिन 798,
अढाई सौ प्रत्याख्यान 253. 306 | श्री विद्यावतीजी |1996 डूंगरगढ़ | अर्जुनलाल पुगलिया | 2014 पौ. कृ. 5 | डूंगरगढ़ | आगमबत्तीसी वाचन, तप सैकड़ों उपवास,
5 तेले, संवत् 2048 से अग्रणी 254. 307 श्री ज्ञानवतीजी 1993 लाडनूं गुलाबचंदजी कोठारी | 2014 मा. शु. 14 | लाडनूं साधनाभ्यास 255. | 308 श्री जयमालाजी |1996 नोहर चंपालालजी लूनिया | 2014 मा. शु. 14 | लाडनूं आगमवाचन,रचना-गद्यमें अनेक एकांकी,
पद्य में लघु व्याख्यान, गीत, मुक्तक, तप 1 से 8 लड़ीबद्ध, हजारों उपवास,
प्रतिवर्ष दस प्रत्याख्यान 256. 309 श्री मधुमतीजी |1995 टमकोर दीपचंदजी कोठारी | 2015 आसो. शु. 15| कानपुर ज्ञान-कई सूत्र, व्याकरण, कार्यदक्ष, तप
दिन 517, अढ़ाई सौ प्रत्याख्यान एक बार 257. 311 श्री गुणमालाजी |1996 उदयपुर पूनमचंदजी तलेसरा 2015 आसो. शु. 15| कानपुर धार्मिक 5 वर्ष की परीक्षा, सैकड़ों गीत व
संवाद बनाये, 1500 उपवास,2 मासखमण,
11 तक लड़ी, 13, 15 उपवास 258. | 3120 श्री भागवतीजी 1996 बाव मोहनलालजी पारख 2015 आसो.शु.15 | कानपुर कई आगम वाचन, धनद चरित्र आदि कई
व्याख्यान बनाये। तप-उपवास हजारों,2 से
8 तक तप दिन 149,अग्रणी संवत् 2040 से 10श्री सुभद्राजी घसीएन उड़ीसा कालूरामजी अग्रवाल | 2016 का. शु.8 कलकत्ता संवत् 2019 गोगुंदा में स्वर्ग-प्रस्थान श्री कुशल श्रीजी 1996 सरदारशहर लालचंदजी चंडालिया 2016 का. शु.8 कलकत्ता 1 से 8 तक लड़ीबद्ध उपवास, संवत् 2052/
में स्वर्गवास
313
260.
315
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 1025 1026 1027 1028 1029 1030 1031 1032 1033 1034 1035 1036 1037 1038 1039 1040 1041 1042 1043 1044 1045 1046 1047 1048 1049 1050 1051 1052 1053 1054 1055 1056 1057 1058 1059 1060 1061 1062 1063 1064 1065 1066 1067 1068 1069 1070 1071 1072 1073 1074 1075 1076