Book Title: Jain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Author(s): Vijay Sadhvi Arya
Publisher: Bharatiya Vidya Pratishthan
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तेरापंथ परम्परा की श्रमणियाँ
443
364.
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क्रम सं दीक्षा क्रम साध्वी-नाम जन्मसंवत् स्थान पिता-नाम गोत्र दीक्षा संवत् तिथि दीक्षा स्थान विशेष-विवरण 359. 1440 श्री सुरेखाजी |2008 चाड़वास शुभकरणजी चोरडिया | 2032 वै. कृ.8 | जयपुर यथोचित शिक्षण, सैकड़ों उपवास, 2 से 8
तक तप संख्या 56, विदुषी, प्रेक्षाध्यान में
रुचि 360. 1441 श्री उज्जवलरेखाजी | 2010 सरदारशहर मंगलचंदजी सेठिया | 2032 वै. कृ. 8 जयपुर यथाशक्य ज्ञानार्जन, तप संख्या 226 442 | श्री कमलरेखाजी | 2011 लाडनूं सोहनलालजी बरमेचा 2032 वै. कृ. 8 जयपुर यथाशक्य ज्ञानाराधना श्री कुसुमरेखाजी | 2012 सरदारशहर | पूनमचंदजी छाजेड़ | 2032 वै. कृ. 8 | जयपुर संवत् 2038 में गण से पृथक् ,नवतेरापंथ में
सम्मिलित 363. 444 श्री राजप्रभाजी | 2007 फारबिसगंज | अमरचंदजी सेठिया | 2032 का. शु. 13 नौगांव | श्री गौरांजी द्वारा दीक्षित, यथोचित प्रशिक्षण
(आसाम) 1445 10श्री कुशलरेखाजी 2002 सरदारशहर फूलचंदजी चोरड़िया 2032 पौ. कृ.3 | लाडनूं यथोचित ज्ञान,तप 1 से8 लडीबद्ध उपवास 365. 1446 श्री अर्चनाश्रीजी | 2012 सरदारशहर भैंरुदानजी चंडालिया 2032 पौ. कृ.3 | लाडनूं संवत् 2035 आगोलाई में स्वर्ग-प्रस्थान.
ढाई वर्ष में तप संख्या 26, एकाशन 13 366. 1448 श्री आनंदप्रभाजी | 2013 हिसार प्रेमकुमारजी मित्तल 2032 पौ. कृ. 3 | लाडनूं यथोचित प्रशिक्षण, तप संख्या 1321,I
एकाशन 475 367. 449 श्री सविताश्रीजी | 2010 सरदारशहर लूनकरण चोरड़िया | 2032 फा. शु. 10 | लाडनूं यथोचित ज्ञानाराधना, साधना 368. श्री ज्योत्स्नाजी 2014 गंगाशहर | राजकरण जी 2033 वै. शु. 13 | सुजानगढ़ अध्ययन यथोचित, तप 1 से 8 उपवास
लड़ीबद्ध, तप संख्या 569 369. 1451 |श्री शकुंतलाजी | 2010 बालोतरा लालचंदजी भंडारी | 2033 ज्ये. कृ. 10 | पड़िहारा अध्ययन यथाशक्य, तप उपवास सैकड़ों,
5 बेले, तेले, पांच का तप 370. | श्री दिव्यप्रभाजी | 2006 गोगुंदा फतेहलाल पोरवाल | 2033 ज्ये. शु. 9 | राजलदेसर | ज्ञानाभ्यास अच्छा, 1 से 8 उपवास, तप
संख्या 292 371. 1453 श्री संघप्रभाजी | 2021 राजलदेसर | श्रीचंदजी डागा 2033 ज्ये. शु.9 | राजलदेसर विशिष्ट ज्ञानाभ्यास, साहित्य जैन व वैदिक
संस्कृति पर तुलनात्मक शोधनिबंध 150 पृष्ठ
का, कई व्याख्यान, गीत मुक्तक भी रचे। 372. 454 श्री गुप्तिप्रभाजी | 2010 राजगढ़ जयचंदजी सुराणा 2033 का. कृ.9 |
विदुषी, गीत, मुक्तक रचना, तप-1 से 8 लड़ीबद्ध उपवास संख्या 1059
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