Book Title: Jain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Author(s): Vijay Sadhvi Arya
Publisher: Bharatiya Vidya Pratishthan

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Page 1064
________________ जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास 122. दशवैकालिक ( शय्यंभवकृत) : सम्पादक- मधुकर मुनि, आगम प्रकाशन समिति ब्यावर, ई. 1985 123. दशवैकालिक नियुक्ति : भद्रबाहु द्वितीयकृत, जैन पुस्तकोद्धार भंडार बम्बई, ई. 1918 124. दशवैकालिक हरिभद्रीय वृत्ति जैन पुस्तकोद्धार फंड बम्बई, 1918 125. दर्शन पाहुड़ : अष्टपाहुड़ के अन्तर्गत 126. दशाश्रुतस्कन्ध निर्युक्तिः एक अध्ययन : डॉ. अशोककुमार सिंह, पार्श्वनाथ विद्यापीठ वाराणसी, ई. 1998 ई. 1967 127. दक्षिण भारत में जैनधर्म : लेखक- पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री, भारतीय ज्ञानपीठ कलकत्ता, 128. दि अन्नोन पिलग्रिम्स : लेखिका - एन. शांता, प्राप्तिस्थल - ऑरिएंटल एंड इण्डोलॉजिकल पब्लिशर्स, शक्तिनगर, दिल्ली 7, ई. 1991 (प्र. सं.) 129. दिगम्बर जैन साधु परिचय : सम्पादक- पंडित धर्मचंदजी, आचार्य धर्मश्रुत ग्रंथमाला दिल्ली, ई. 1985 (प्र. सं.) 130. दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि : लेखक-स्वर्गीय कामताप्रसाद जैन, सारस्वत ग्रंथमाला प्रकाशन समिति गाँधी नगर, दिल्ली, ई. 1995 131. दिव्यविभूति महासती मोहनदेवीजी : लेखिका - साध्वी हुक्मदेवीजी, कोल्हापुर रोड़ दिल्ली, ई. 1970 132. दीघनिकाय : अनुवादक - राहुल सांकृत्यायन, महाबोधि सभा सारनाथ, ई. 1936 133. दीर्घ तपस्विनी: मुनि धनंजय कुमार, आदर्श साहित्य संघ चूरू, ई. 1996 134. देवगढ़ की जैन कलाः एक सांस्कृतिक अध्ययन : लेखक- डॉ. भागचन्द्र जैन 'भागेन्दु', भारतीय ज्ञानपीठ नई दिल्ली, ई. 2000 (द्वि. सं.) 135. देवगढ़ के जैन मन्दिर : विश्वम्भरदास गार्गीय श्री देवगढ़ तीर्थोद्धारक दंड झांसी, वि. सं. 2448 " 136. धर्ममूर्ति आनन्दकुमारी : लेखक-मुनि नेमिचन्द्र, वि. सं. 2008 (प्र. सं.) 137. धर्मशास्त्र का इतिहास : भाग 1-4, लेखक - पाण्डुरंग वामन काणे, हिन्दी समिति सूचना विभाग लखनऊ 138. नंदीसूत्र : युवाचार्य मधुकर मुनि, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर ( राजस्थान ) ई. 1982 (प्र.सं.) 139. नंदीसूत्र वृत्ति : ( मलयगिरिकृत), आगमोदय समिति, सूरत 140. न्यायबिंदु : आचार्य धर्मकीर्ति, विद्याविकास प्रैस काशी 141. निरयावलिका सूत्र : सम्पादक- युवाचार्य मधुकरमुनि, आगम प्रकाशन समिति ब्यावर, (राजस्थान) ई. 2002 (तृ. सं.) 142. निरूक्त कोश : आचार्य तुलसी, जैन विश्वभारती लाडनू, ई. 1984 Jain Education International 1002 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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