Book Title: Jain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Author(s): Vijay Sadhvi Arya
Publisher: Bharatiya Vidya Pratishthan

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Page 1025
________________ Jain Education International तेरापंथ परम्परा की श्रमणियाँ For Private & Personal Use Only क्रम सं दीक्षा क्रम| साध्वी-नाम जन्मसंवत् स्थान | पिता-नाम गोत्र | दीक्षा संवत् तिथि | दीक्षा स्थान विशेष-विवरण 227. | 274 0 श्री सुदर्शनाजी | 1991 गंगाशहर तनसुखदास लालानी | 2010 वै. शु. 13 गंगाशहर | सजोड़े दीक्षा, ज्ञान-आगम,स्तोक,संस्कृत, तप 1 से 15 तक कुल संख्या 1129 उपवास,संवत् 2042 देशनोक में स्वर्गस्थ श्री सुबोध | 1992 बीदासर मूलचंद जी बोथरा | 2010 वै. शु. 13 | गंगाशहर | ज्ञान-आगम,स्तोक आदि,उपवास संख्या कुमारीजी 1193,संवत् 2039 से अग्रणी | 277 श्री धर्मवतीजी | 1985 गंगाशहर | देवचंद गुलगुलिया | 2010 का. कृ. 10 | जोधपुर कलादक्ष, तप संख्या 2085 कुल,प्रति वर्ष दस प्रत्याख्यान 10 श्री महाकुमारीजी | 1989 डूंगरगढ़ भैरुदानजी पुगलिया | 2010 का. कृ. 10 | जोधपुर विशिष्ट कला कौशल.तप संख्या 1603, दस प्रत्याख्यान 7 बार श्री प्रकाशवतीजी | 1992 सिसाय नरसिंहदास सिंगल | 2010 का. कृ. 10 | जोधपुर ज्ञान-आगम, स्तोक, संस्कृत व अन्य, लिपि कलादक्ष, तप संख्या 1122 श्री कैलाशवतीजी 1992 सिसाय ताराचंदजी सिंगल | 2010 का. कृ. 10 जोधपुर स्तोक आगम ज्ञान, तप संख्या 1631, दस प्रत्याख्यान 5 बार | श्री जयकुमारीजी | 1992 छोटी खाटू रूपचंदजी छाड़ेवा | 2010 का. कृ. 10 | जोधपुर आगम बत्तीसी वाचन, सैकड़ों उपवास, 5 चोले, 4 पंचोले, 1 अठाई | श्री कंचनकंवरजी | 1993 छोटी खाटू | मिलापचंदजी भंडारी 2010 मा. कृ.। | टाड़गढ़ आगम कुछ संघीय साहित्य वाचन,1 से 10 तक तप संख्या 1323,दस प्रत्याख्यान 10 श्री लक्ष्मीवतीजी | 1987 सरदारशहर कुंदनमलजी जम्मड़ 2010 फा. कृ. 10 | कंटालिया | उपवास से 10 दिन तक लड़ीबद्ध तप श्री शुभवतीजी | 1991 सिसाय लालचंदजी सींगल | 2010 फा. कृ. 14 सुधरी ज्ञान-कई आगम, तप 1 से 9 उपवास तक संख्या 880, अढाई सौ प्रत्याख्यान 2 बार | 286 श्री धनश्रीजी 1996 सरदारशहर सुजानमल चंडालिया 2011 वै. कृ. 6 | बाव स्तोक, सूत्र ज्ञान, सृजन-200 लगभग गीत, उपवास 2000, एक मासखमण, कुल तप दिन 2075 238. 287 श्री गुलाबकुमारी 1988 लाडनूं नथमलजी कठोतिया 2011 का. कृ.8 | बम्बई सूत्रज्ञान, प्रतिवर्षलगभग 90-95 उपवास, 8 तक लड़ीबद्ध तप, वर्ष में दो बार दस प्रत्याख्यान www.jainelibrary.org

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