Book Title: Jain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Author(s): Vijay Sadhvi Arya
Publisher: Bharatiya Vidya Pratishthan

View full book text
Previous | Next

Page 1020
________________ Jain Education International 169 73. For Private & Personal Use Only क्रम सं दीक्षा क्रम | साध्वी-नाम जन्मसंवत् स्थान | पिता-नाम गोत्र दीक्षा संवत् तिथि दीक्षा स्थान | विशेष-विवरण 199 श्री मानकंवरजी| 1979 बीदासर | कालूरामजी बुच्चा | 2003 का. कृ.1 | | राजगढ़ | यथाशक्य ज्ञान ध्यान, सेवा, तप1 से 11| तक लड़ी, कुल संख्या 1777 श्री रतनांजी 1981 चूरू हुलासामलजी कोठारी | 2003 का. कृ.1 | राजगढ़ यथाशक्य ज्ञान-ध्यान, तप संख्या 1486, संवत् 2057 बीदासर मंसंथारा सह स्वर्गवास 10श्री सोनांजी | 1982 डूंगरगढ़ | विरधीचंदजी बाफणा| 2003 का. कृ. 1 राजगढ़ बोल, स्तोक कंठस्थ, 1 से 15 तक का लड़ीबद्ध तप, कुल तप संख्या 951 श्री गणेशांजी | 1987 बोरावड़ हस्तीमलजी गेलड़ा| 2003 का. कृ.1 | राजगढ़ तीन वर्ष की वय में उपवास का कीर्तिमान संस्कृत, व्याकरण, आगम ज्ञान, कविता मुक्तक की रचना,कलादक्ष,लगभग 131 उपवास,1300 एकाशन,83 आयंबिल |204 श्री कंचनकंवरजी | 1988 उदयपुर | जोधसिंहजी सिंघवी 2003 का. कृ.1 | राजगढ़ छह आगम कंठस्थ,संवत् 2015 से अग्रणी | 206 0 श्री दीपांजी | 1981 डूंगरगढ़ | ईश्वरचंदजी पुगलिया | 2003 मा. शु. 5 | चूरू पांच हजार गाथाएं कंठस्थ, तप संख्या 1279, अनशन तप 46 दिन संवत् 1990 थामला में दिवात 174. 207 |"श्री चांदाजी | 1982 डूंगरगढ़ | मोतीलालजी मालू | 2003 मा. शु. 5 तप संख्या 1032 संवत् 2057 तक 1208 श्री मनोरांजी | 1986 लावा | कनकमलजी | 2003 मा. शु. 5 यथाशक्य ज्ञान, तप सैकड़ों उपवास, बेले, तेले, चार व आठ का तप भी किया। 176. 209 श्री मानकंवरजी | 1987 टमकोर दीपचंदजी कोठारी | 2003 मा. शु. 5 कतिपय स्तोक आदि ज्ञान, तप संख्या 1106,आयंबिल 165 177. 1210 | श्री सूरजकंवरजी| 1988 शार्दूलपुर | गणपतराय सीधी | 2003 मा. शु. 5 स्तोक ज्ञान, तप संख्या 528,दो विगय व 15 द्रव्य के अतिरिक्त का त्याग 178. 211 श्री वरजू जी |1989 लावा कनकमलजी चींपड़ 2003 मा. शु. 5 चूरू कंठस्थ ज्ञान अच्छा है। सैकड़ों उपवास, अठाई,21 कातप, कुल संख्या बेलेके आगे की 150 179. 1213 श्री फूलकंवरजी 1984 सुजानगढ़ प्रेमचंदजी सिंधी 2004 का. कृ.7 | रतनगढ़ स्तोक 13,वाचन 30 आगम,8आगोंकीसूची तैयारकी,तपसंख्या 304,संवत् 2027 सेअग्रणी 175. जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 1018 1019 1020 1021 1022 1023 1024 1025 1026 1027 1028 1029 1030 1031 1032 1033 1034 1035 1036 1037 1038 1039 1040 1041 1042 1043 1044 1045 1046 1047 1048 1049 1050 1051 1052 1053 1054 1055 1056 1057 1058 1059 1060 1061 1062 1063 1064 1065 1066 1067 1068 1069 1070 1071 1072 1073 1074 1075 1076