Book Title: Jain Dharma ki Shramaniyo ka Bruhad Itihas
Author(s): Vijay Sadhvi Arya
Publisher: Bharatiya Vidya Pratishthan

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Page 1021
________________ Jain Education International तेरापंथ परम्परा की श्रमणियाँ 181. 1215 182. 1216 185. For Private & Personal Use Only क्रम सं दीक्षा क्रम साध्वी-नाम जन्मसंवत् स्थान | पिता-नाम गोत्र दीक्षा संवत् तिथि | दीक्षा स्थान | विशेष-विवरण 180. 214 श्री सिरेकंवरजी 1986 सुजानगढ़ माणकचंदजी डोसी | 2004 का. कृ.7 रतनगढ़ यथोचित ज्ञानार्जन, तप संख्या 982, स्वाध्याय, मौन, जाप का क्रम श्री मनोरांजी |1980 राजगढ़ | हरखचंदजी सिंधी | 2004 मा. शु. 5 बीदासर यथोचित ज्ञानार्जन, उपवास से 10 तक लडी.दो मास प्रायः एकान्तर, कलादक्ष श्री चांदांजी | 1988 टाड़गढ़ | मीठालालजी कोठारी | 2004 मा. शु. 5 बीदासर कंठस्थ ज्ञान व आगम ज्ञान श्रेष्ठ, ग्रंथों की प्रतिलिपियां भी की, तप संख्या 980 183. 217 श्री पूनांजी | 1982 लाडनूं जयंचदजी खटेड | 2005 चै. शु. 11 लाडनूं आवश्यक ज्ञान कंठस्थ, उपवास से 15 दिन तक लड़ीबद्ध तप 184. 218 श्री केशरजी | 1985 राजगढ़ | रायचंदजी सुराणा | 2005 चै. शु. 11 लाडनूं साध्वोचित ज्ञान, कला में प्रवीण, तप संख्या 1077,प्राय:प्रतिवर्षदस प्रत्याख्यान | श्री पानकंवरजी | 1987 लाडनूं डालमचंदजी बरमेचा | 2005 चै. शु. 11 लाडनूं संवत् 2052 बीदासर में स्वर्गस्थ श्री गुलाबांजी | 1987 चूरू गोपालचंदजी सुराणा | 2005 चै. शु. 1। लाडनूं कतिपय स्तोक आगम ज्ञान, तप संख्या 816, कई हरिजनों को व्यसन मुक्त किया। | श्री कानकंवरजी | 1988 लाडनूं इन्द्रचन्द्रजी घीया | 2005 चै. शु. 11 साध्वोचित ज्ञानार्जन, तप 1 से 8 तक कुल संख्या 825 | 222 श्री चांदकंवरजी | 1989 लाडनूं दुलीचंदजी गोलछा | 2005 चै. शु. 11 टीका, भाष्य, न्याय, दर्शन योग विषयक ग्रंथों का विशिष्ट अध्ययन, व्याख्यान, मुक्तक, गीत की रचना, तप संख्या 538, दस प्रत्याख्यान 15 बार, विदुषी साध्वी, संवत् 2032 से अग्रणी |224 श्री जतनकंवरजी 1990 लाडनूं | मोहनलालजी बैद | 2005 चै. शु. 11 | लाडनूं पांच वर्ष की परीक्षा उत्तीर्ण, सेवाभाविनी, तप 100 उपवास, 1 बेला | श्री पानकंवरजी | 1977 सिरसा डूंगरसीदास गोलछा | 2005 का. कृ. 8 | छापर संवत् 2022 में गण से पृथक् श्री मूलांजी 1989 फतेहगढ़ निहालचंद सिंघवी | 2005 का. कृ. 8 छापर कच्छ गुजरात की तेरापंथी प्रथम साध्वी, 13 वर्ष की वय में वर्षीतप, कुल तप 1899,स्वाध्यायी हैं 1187. 226 2. www.jainelibrary.org

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