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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास तार्किक भी थीं, प्रश्नकर्ता को ऐसा उत्तर देतीं, कि वह समाधान पाकर संतुष्ट होता था। आपने तीन साध्वियों को स्वयं दीक्षित किया-श्री चांदाजी, पेफांजी, श्री चांदाजी। आपको ज्योतिष तथा स्वर का भी अच्छा ज्ञान था, आप प्रायश्चित् देने में भी कुशल थीं, अनेक साध्वियाँ आपसे प्रायश्चित् ग्रहण करती थीं सं. 1983 से 93 तक रतनगढ़ में स्थिरवासिनी रहीं, वहीं ज्येष्ठ कृ. 10 को समाधिपूर्वक मृत्यु हुई। 7.6.11 श्री जयकंवरजी 'माधोपुर' (सं. 1935-95) 4/194
आप ढूंढाण के श्री शोभालाल जी पोरवाल की पत्नी थीं। पतिवियोग के बाद 26 वर्ष की वय में जयाचार्य से बीदासर में दीक्षित हुईं। आप संयमनिष्ठ, सेवाभावी, त्यागी-वैरागी साध्वी थीं। मघवागणी से कालूगणी तक के लिये उदक-व्यवस्था प्रायः आप ही करती थीं। 86 वर्ष की आयु व 60 वर्ष की दीक्षा पर्याय में उन्हें आचार्य तुलसी तक का शासनकाल देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आप लाडनूं स्थिरवास रहीं, वहीं चैत्र शुक्ला 1 सं. 1995 को दिवंगत हुईं। 7.6.12 श्री जड़ावां जी 'बोरावड़' (सं. 1937-2000) 4/219
___ आपका जन्म श्री चैनजी बम्ब के यहां संवत् 1909 में हुआ पीहर व ससुराल दोनों बोरावड़ में थे। पतिवियोग के पश्चात् मृगसिर कृ. 5 को मुनि श्री भगवानजी द्वारा बोरावड़ में ही दीक्षा स्वीकार की। उस दिन आप गण एवं गणी के प्रति एकनिष्ठ भक्ति रखती थीं, अपनी चर्या में भी अति जागरूक थीं। आपने 1200 उपवास, 29 बेले, 21 तेले, चोले व पंचोले 7 बार, 10 से 13 तक के उपवास एक बार किये। आप 91 वर्ष की अवस्था में साधिक 63 वर्ष का संयम पर्याय पालकर ज्येष्ठ शु. 9 को छापर में दिवंगत हुईं। आपने भी छह आचार्यों की सेवा-भक्ति की। सं. 1955 से अग्रणी बनकर विचरीं।
7.7 पंचम आचार्य श्री मघवागणी के शासनकाल की प्रमुख श्रमणियाँ (संवत् 1938-49)
तेरापंथ-संघ के पंचम आचार्य श्री मघवागणी हुए, 12 वर्ष की संयम पर्याय और 24 वर्ष की वय में श्री जयाचार्य द्वारा आप युवाचार्य पद पर नियुक्त हुए। 18 वर्ष तक युवाचार्य पद पर अधिष्ठित रहकर जयाचार्य के स्वर्गवास के पश्चात् वि. सं. 1938 को जयपुर में मघवागणी ने तेरापंथ धर्मसंघ का दायित्व संभाला। उनका शासनकाल 11 वर्ष का था, इस अल्प अवधि में 36 साधु एवं 83 साध्वियाँ दीक्षित हुईं। प्रथम साध्वी जोधांजी और अंतिम श्री छगनांजी थीं। इनमें कई साध्वियाँ उत्कट तपस्विनी धर्मप्रचारिका, शास्त्रज्ञा एवं संघ प्रभाविका हुईं। आठ बाल-ब्रह्मचारिणी थीं। गण से पृथक् 5 साध्वियों के अतिरिक्त शेष 78 साध्वियों ने अपने संयम, तप, स्वाध्याय-ध्यान आदि विभिन्न उपक्रमों द्वारा आत्मोत्थान के साथ तेरापंथ को भी गौरवान्वित किया।
7.7.1 श्री जोधांजी, श्री लिछमांजी 'सुजानगढ़' (सं. 1938-2001) 5/1-2
आप दोनों माँ-पुत्री थीं, सुजानगढ़ के श्री कोडामल जी बेगवानी की क्रमशः पत्नी एवं कन्या थीं। जोधांजी ने पतिवियोग के पश्चात् नौ वर्षीया पुत्री लिछमां जी के साथ सं. 1938 भादवा सुदी 13 को मघवागणी के द्वारा
7. शासन-समुद्र भाग-11
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