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तेरापंथ परम्परा की श्रमणियाँ
में गाय ने भयंकर चोट लगाई, उनके सिर का मांस बाहर निकल आया। आप उसी समय डॉक्टर के यहां से औजार लाईं और साध्वीजी को 13 टांके लगाये। तप के क्षेत्र में भी आप अग्रणी रहीं, आपने उपवास से 10 तक क्रमबद्ध तप किया। उसमें सं. 2041 तक 2328 उपवास, 119 बेले, 2 तेले, 10 चार, 11 पांच, 2 छह, एक सात, तीन 8, दो 9, एक 10 व एक 16 का तप किया। आपके जीवन का अधिकांश भाग सेवा और तप में व्यतीत हुआ। 7.10.25 श्री नजरकंवरजी 'लाडनूं' (सं. 1977-2022 ) 8/95 _आप धनराजजी बैद की पुत्री थीं। 13 वर्ष की अवस्था में ज्येष्ठ शुक्ला पूर्णमासी को लाडनूं में दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा के पश्चात् आपने 8 सूत्र व 27 स्तोक, आख्यान आदि सीखे। लगभग 23 हजार श्लोक आपको कंठाग्र थे। व्याख्यान देने में भी आप दक्ष थीं। सं. 1997 से अग्रगण्या के रूप में विचरण कर आपने धर्म की महती प्रभावना की। क्रमबद्ध तपस्या 11 तक की, उसमें 2610 उपवास, 72 बेले, 26 तेले, 12 चोले, 10 पचोले एवं 2 बार छह का तप किया। आप अत्यंत सहनशील एवं समतावान थीं, अंतिम समय भयंकर बीमारी को प्रसन्नतापूर्वक सहन करती हुई सुजानगढ़ में स्वर्गवासिनी हुईं। 7.10.26 श्री सुरजांजी 'भादरा' (सं. 1978-2031) 8/97
आप नोहर के कोठारी परिवार की कन्या एवं भादरा के बींजराजजी चोरड़िया की पुत्रवधू थीं। पति के देहान्त के पश्चात् आप मृगशिर शुक्ला 9 को राजलदेसर में दीक्षित हो गईं। आप बड़ी आत्मार्थिनी थीं, अपने जीवन में आपने तप के विविध प्रयोग किये। उपवास से 12 तक क्रमबद्ध तप, दो पंचरंगी, एक धर्मचक्र, प्रतरतप, चौबीस तीर्थंकर तप, परदेशी राजा के 12 बेले, अढ़ाई सौ प्रत्याख्यान किये, इस प्रकार 3766 उपवास, 469 बेले, 53 तेले, 51 चोले, 48 पांच, 4 छह, 3 सात, चार 8, दो बार 9 की तपस्या की। पौष कृ. 1 को आडसर में संथारा सहित स्वर्गगामिनी बनीं।
7.1.27 श्री सोनांजी 'साजनवासी' (सं. 1978-2036) 8/100
आपका जन्म श्री दुलीचंदजी लोढ़ा के यहां सं. 1969 में हुआ। नौ वर्ष की उम्र में पिता के साथ चैत्र कृष्णा 6 को सुजानगढ़ में दीक्षा ग्रहण की। आप अत्यंत सरल स्वभावी, लज्जाशील थीं, प्रतिदिन प्रहर, मौन, स्वाध्याय आदि करतीं, 8 वर्ष अग्रगण्या के रूप में विचरी। आचार्य श्री तुलसी के साथ भी 50 हजार मील का पाद-विहार कर तेरापंथ में कीर्तिमान स्थापित किया। अंतिम समय सुजानगढ़ में दिवंगत हुईं। साध्वीश्री की स्मृति में ‘स्वर्णहार' नामक लघु पुस्तिका प्रकाशित हुई।
7.10.28 श्री तनसुखांजी 'लाडनूं' (सं. 1979-स्वर्गवास सं. 2042 से 60 के मध्य) 8/102
आपका जन्म संवत् 1960 में लाडनूं के श्री रामलालजी गुंदेचा के यहां तथा विवाह वहीं सूरजमलजी चोपड़ा के साथ हुआ। सं. 1979 में सुहागिन वय में भाद्रपद शुक्ला 10 को बीकानेर में दीक्षा ग्रहण की। आप उग्र तपस्विनी थीं, आपकी तप सूची इस प्रकार है-लघुसिंहनिष्क्रीड़ित तप की दो परिपाटी, दो धर्मचक्र, प्रतरतप, पचरंगी तप, परदेशी राजा के 12 बेले, रसों के 5 तेले, उपवास से नौ तक की लड़ी, इस प्रकार कुल तप संख्या 4486 हुई। आप लाडनूं में स्थिरवास कर रही थीं, वहीं आपका स्वर्गवास हुआ प्रतीत होता है, क्योंकि तेरापंथ परिचायिका में आपका नामोल्लेख नहीं है।
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