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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास 7.10.46 श्री पन्नांजी 'देरासर' (सं. 1984-स्वर्ग. सं. 2042-60 के मध्य) 8/154
आपका जन्म सं. 1964 मधेपुर (बिहार) ग्राम में श्री जेठमलजी के यहाँ हुआ। आपने बीस वर्ष की सुहागिन अवस्था में श्रीडूंगरगढ़' में कार्तिक कृष्णा अष्टमी को दीक्षा अंगीकार की। आपका जीवन विशिष्ट त्याग-तपस्या का रोमांचकारी एक दस्तावेज है। गृहस्थावस्था में ही आपने उपवास से आठ तक लड़ीबद्ध तप किये, साध्वी जीवन में उपवास से 16 तक की तपस्या में कुल 2543 दिन तिविहार एवं 6814 दिन चौविहार तप में बिताये। आछ के आगार से छहमासी, दो बार चौमासी, तीनमासी, दो बार अढ़ाई मासी, पौने दो मासी, डेढ़ मासी, 41, 14, 32, 30, 31, 29, 29, 28, 28, 13, 18, 51 आदि तप किया। इनके अतिरिक्त 31 बार दस प्रत्याख्यान, 1 बार ढाईसौ प्रत्याख्यान, पंचरंगी चौविहार (4 बार) कंठीतप, प्रतरतप, धर्मचक्र तप, कर्मचूर तप, परदेशी राजा के 12 बेले (4 बार) आदि समग्र जीवन की कुल तपस्या 31 वर्ष और 4 दिन की की। पारणे में गुड़ शक्कर का त्याग, दो विगय उपरांत त्याग, एक वस्त्र से अधिक ओढ़ने का त्याग, पारणे में विचित्र अभिग्रह, दो हजार गाथाओं का स्वाध्याय, सवालक्ष जप आदि विविध तपस्याएँ देखकर आचार्य श्री तुलसी ने आपको 'दीर्घतपस्विनी' विशेषण प्रदान किया। साध्वी श्री पन्नाजी की तपःपूत साधना उनके दृढ़तम संकल्प एवं साहस की प्रतीक एवं श्रमण-संस्कृति के मस्तक को गौरवान्वित करने वाली अद्भुत साधना थी, आपके स्वर्गवास की निश्चित् तिथि ज्ञात नहीं हुई।
7.10.47 श्री भत्तूजी 'सरदारशहर' (सं. 1985-2037) 8/174
आपका जन्म श्री शोभचंदजी दूगड़ के यहां सं. 1972 में हुआ। आपने अपने पति श्री मन्नालालजी के साथ सरदारशहर में ज्येष्ठ शुक्ला 4 को दीक्षा अंगीकार की, उस समय आपकी अवस्था 14 साल की थी। आपने अपने संयमी जीवन को विनय, विवेक, अनुभवज्ञान, हस्त-कौशल, चातुर्य, स्फूर्ति, ऋजुता, मृदुता, समता, सहनशीलता आदि विशिष्ट गुणों से मंडित किया हुआ था। त्याग और वैराग्य आपके जीवन में साकार था। आपके जीवन संस्मरण इतने हृदयग्राही और प्रेरक हैं कि लगता है, साध्वी जीवन हो तो ऐसा होना चाहिये। श्री नगीनाजी ने 'स्वर्गीया साध्वी श्री भत्तूजी' नामक पुस्तक लिखी है, शासन समुद्र में भी कई प्रेरक प्रसंग आपके जीवन से संबंधित अंकित है। आपके तपोमय जीवन की सूची इस प्रकार है-उपवास से 11 तक की लड़ी में पचोले तक कई बार, छ से नौ तक तथा 20, 22, 23, 27 उपवास दो-दो बार एक मासखमण, 51 बार दस प्रत्याख्यान, वर्ष में दस मास आजीवन पांच विगय वर्जन, दो मास छह विगय वर्जन, द्रव्यों का परिमाण अन्य भी अनेकों त्याग अपने जीवन में किये हुए थे। लाडनूं में संवत् 2037 को आप महाप्रयाण कर गई।
7.10.48 श्री बालूजी 'टमकोर' (सं. 1987-2028) 8/182
आप खींयासर ग्रामवासी श्री हीरालालजी बच्छावत की सुपुत्री थीं, ढूंढाण के तोलारामजी चोरडिया के साथ आपका विवाह हुआ। आप आचार्य महाप्रज्ञजी की महिमावंत मातेश्वरी थीं। अपने होनहार पुत्ररत्न में आपने वो सुसंस्कार भरे कि कभी नथमलजी के नाम से प्रसिद्ध वह बालक तेरापंथ धर्मसंघ का दसम आचार्य एवं महावीर की ध्यान साधना प्रणाली को प्रेक्षाध्यान के माध्यम से विश्व में विस्तार करने वाला प्रज्ञापुरुष बना। श्री बालूजी स्वयं भी संयम में जागरूक पंडिता साध्वी थीं, देह और आत्मा की भिन्नता को काफी गहराई से जीवन में उतारा हुआ था,
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