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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास कोठारी के साथ हुआ। आपने पतिवियोग के पश्चात् गोगुंदा में आषाढ़ शुक्ला एकम को दीक्षा ग्रहण की, आपकी तपस्या का विचित्र इतिहास इस प्रकार है-4 वर्ष एकांतर उपवास, 6 वर्ष बेले-बेले पारणा, 5 पचरंगी, एक सतरंगी, उपवास से 16 दिन तक लड़ीबद्ध तप, जिसमें उपवास 2129, बेले 265, तेले 128, चोले 51, पचोले 46, छ 10, सात 11, अठाई दो की। आपने तप के इतिहास में आछ के आधार पर बारहमासी तप, तथा 'सर्वतोभद्र तप' (महाभद्रोत्तर) करके तेरापंथ में दो नये कीर्तिमान स्थापित किये। आमेट में उनका महाप्रयाण हुआ।
7.10.14 श्री नजरकंवरजी 'वास' (सं. 1971-स्वर्ग. सं. 2042-60 के मध्य) 8/56
श्री नजरकवरजी 'वास' (मेवाड़) निवासी श्री किस्तूरचंदजी पोरवाल की सुपुत्री थीं, 13 वर्ष की वय में आषाढ़ शुक्ला एकम को गोगुंदा में श्री कालूगणी द्वारा दीक्षा अंगीकार की। आपने सात सूत्र एवं कई व्याख्यान कंठस्थ किये। लेखन कला में विकास कर पांच सूत्रों को लिपिबद्ध किया। प्रतिवर्ष दस प्रत्याख्यान, प्रहर, खाद्य-संयम अनासक्त भावना एवं सहज वैराग्य वृत्ति से अपने संयमी जीवन को सुशोभित किया। समता, ऋजुता, मृदुता के साथ तप के क्षेत्र में आपने 2709 उपवास, 232 बेले, 55 तेले, 21 चोले, 6 पांच, छह व आठ उपवास एक बार किये। सं. 1998 से अग्रणी के रूप में विचरण कर शासन की महती प्रभावना की। आपका स्वर्गवास संवत् 2042 से 60 के मध्य में हुआ।
7.10.15 श्री सुखदवांजी 'राजलदेसर' (सं. 1972-2026) 8/59
__ आप रतनगढ़ निवासी श्री लिखमीचंद जी कोचर की पुत्री व श्री तनसुखदासजी की पत्नी थीं। पति-पत्नी दोनों ने वैशाख शुक्ला 10 को बालोतरा में दीक्षा-ग्रहण की। आप अपने अमित आत्म बल से तप के मार्ग पर आगे बढ़ी तथा उपवास से 15 दिन तक क्रमबद्ध तप किया। तप की तालिका इस प्रकार है-उपवास 1950, बेले 211, तेले 42, चोले 27, पचोले 32, छह 14, सात 14, आठ 14, नौ 4, 11 और 13 दो बार, 10, 14, 15 का तप एक बार। तप के साथ जाप, मौन, स्वाध्याय का नियमित क्रम चलता। आप 5 वर्ष तक संयम का निर्मल पालन कर चैत्र शु. 13 को राजलदेसर में स्वर्गवासिनी हुईं।
7.10.16 श्री लिछमांजी 'कालू' (सं. 1973-2033) 8/60
आपका जन्म देशनोक के श्री हेमराजजी भूरा के यहां एवं विवाह कालू निवासी सिरदारमलजी नाहटा के साथ हुआ। शादी के तीन साल पश्चात् पति का देहान्त होने पर 17 वर्ष की वय में फाल्गुन शु. 5 को सुजानगढ़ में दीक्षा स्वीकार की। आपने कई आगम, स्तोत्र, व्याख्यान आदि कंठस्थ किये। व्याख्यान की शैली प्रभावशाली थी, पुराने रागों की ज्ञाता होने से दोपहर के समय बहनें विशेष लाभ लेती। आपने 5 बार धर्मचक्र, 7 बार कर्मचूर, 16 बार दस प्रत्याख्यान के अतिरिक्त 2816 उपवास, 185 बेले, 11 तेले, 15 चोले, 2 पचोले आदि तप भी किया। अपने जीवन से तप-त्याग का संदेश देकर लाडनूं में आपकी देह का विलय हुआ।
13. उबाली हुई छाछ का निथरा हुआ पानी। 14. शासन-समुद्र, भाग-15, पृ. 195.
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