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जैन श्रमणियों का बहद इतिहास
6.7.176 आर्या सारो (19वीं सदी)
‘पन्नवणां सूत्र' का 18वां पद आर्या चिमनांजी की शिष्या वखतांजी उनकी शिष्या सारो ने किशनगढ़ में लिपिकृत किया प्रति आ. सुशीलमुनि आश्रम में है। 6.7.177 आर्या चंनणीजी (19वीं सदी)
'कड़वा बोल नी सज्झाय' आर्या चंनणीजी की प्रतिलिपि मुन्नालाल सिंघी धर्मशाला, चांदनी चौंक दिल्ली से प्राप्त हुई। 6.7.178 साध्वी गुणश्री (19वीं सदी)
माणिक मुनि रचित 'मांकण स्वाध्याय' गुजराती भाषा में साध्वी गुणश्री द्वारा लिखित पाटण भाभाना पाडा मां विमलगच्छ उपाश्रय के ज्ञान भंडार (प्रति नं. 3156) में उपलब्ध है।535 6.7.179 आर्या हरकुंवरजी (19वीं सदी)
'धर्मध्यान की सज्झाय' में हरकुंवरबाई स्वामी के नाम का उल्लेख है। नाम और ग्रंथ-प्राप्ति के आधार पर ये स्थानकवासी परम्परा की प्रतीत होती हैं। लिपि के आधार पर काल 19वीं शताब्दी के आसपास का है। प्रति प्राच्यविद्यापीठ शाजापुर में उपलब्ध है। 6.7.180 आर्या केसरजी (सं. 1901)
पुण्यकलश उपाध्याय के शिष्य जेतसीकृत 'दशवैकालिक सूत्र गीतबंध' 'रचना सं. 1777 की प्रतिलिपि बिहारीचंद्र ने विसलपुर में सं. 1901 भाद्रपद शु. 11 को आर्या केसरजी को पठनार्थ दी। प्रति आ. सुशील मुनि आश्रम नई दिल्ली में है। 6.7.181 आर्या चनांजी (सं. 1902)
सं. 1902 चैत्र शु. 7 सोमवार को किसनगढ़ में प्रतिलिपि की गई 'ठाणांगसूत्र' की. प्रति के अंत में चनांजी ने अपनी गुरूणी परंपरा भी दी है-महासती हरूजी की शिष्या पेमांजी - अजबांजी-अमरांजी-चनांजी। यह प्रति आ. सुशीलमुनि आश्रम नई दिल्ली (परि. 248) में है। 6.7.182 आर्या अजुबांजी (सं. 1903)
दशाश्रुतस्कन्ध की प्रतिलिपि में उदांजी की शिष्या अजुबांजी ने सं. 1903 पोष कृ. 14 रविवार मेड़ता नगर में इसकी पांडुलिपि की, यह उल्लेख है। प्रति आ. सुशील मुनि आश्रम नई दिल्ली में है। 6.7.183 आर्या पनां (सं. 1903)
वीरत्थुई की सं. 1903 पोष शु. 5 मंगलवार को ओडपुर में लिखी आर्या पनांजी की प्रतिलिपि में उल्लेख 535. पाटण जैन ग्रंथ भंडार के ह. ग्रं. सू. भाग 4, पृ. 155
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