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दिगम्बर परम्परा की श्रमणियाँ
4.6.47 नादोव्वे ( 14वीं सदी)
सालूर (मैसूर) के निषिधि लेख में चन्द्रनाथ देव की शिष्या नादोव्वे के समाधिमरण तथा नागय्य द्वारा इस निषिधि की स्थापना का उल्लेख है। भाषा कन्नड़ है।
4.6.48 कामीगौण्डि (वि. संवत् 1452 )
हिरे आवली में तीसरे पाषाण पर संस्कृत तथा कन्नड़ में वर्ष 1395 ईसवी (लूईराइस) का उल्लेख है कि जिस समय राजधानी हस्तिनापुर विजयनगर और समस्त शहरों के अधीश्वर महाराजाधिराज हरिहरराय का राज्य था, तब उसके मंत्री काबरामण की पत्नि कामीगौंण्डि संन्यास लेकर स्वर्गगामिनी हुई। 2
4.6.49 चन्दगौण्डि (वि. संवत् 1456 )
हीरे आवलि के पांचवें पाषाण पर उट्टङ्कित है कि शक संवत् 1321 ( ई. 1399 ) में चन्दगौण्ड की पत्नी चन्दगौण्ड जिनके पुरोहित विजयकीर्ति थे; उसने संन्यास लेकर स्वर्ग की ओर प्रयाण किया। यह अभिलेख संस्कृत तथा कन्नड़ भाषा में है । 3
4.6.50 छत्तवे गंती (वि. संवत् 1457)
अर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ मैसूर, एनिअल रिपोर्ट पृ. 171 बैंगलोर ( ईसवी 1932) के उल्लेखानुसार शिलालेख संख्या 15 पर छत्तवे गंती, के समाधिमरण की सूचना उपलब्ध होती है। 84
4.6.51 बोम्मिगौण्डि (वि. संवत् 1460 )
शक सम्वत् 1325 (ईसवी 1403) हीरे आवलि के 17वें पाषाण पर संस्कृत - कन्नड़ भाषा में लिखित शिलालेख के अनुसार हरिहरराय के राज्यकाल में बोम्मिगोंण्डि ने संन्यास ग्रहण कर स्वर्गारोहण किया।"
4.6.52 कालि - गौण्ड (वि. संवत् 1474 )
हादिकल्लु में, रते हक्कल्के के समाधि पाषाण पर उल्लेख है कि वर्ष हेमलम्बी 1417 ई. (लूईराइस) में गुणसेन सिद्धान्तिदेव के गृहस्थ शिष्य ...... अय्यप्प गौड की पत्नी कालि - गौण्डि ने संन्यास ग्रहण कर स्वर्ग गमन किया। शिलालेख की भाषा संस्कृत तथा कन्नड़ है | "
81. अभिलेख - 540, जै. शि. सं., भाग 4, पृ. 356
82. अभिलेख - 594, जै. शि. सं., भाग 3
83. अभिलेख 598, जै. शि. सं., भाग 3
84. अभिलेख - 591, जै. शि. सं., भाग 4
85. डॉ. ए. एन. उपाध्ये, जैन बिबलियोग्राफी, पृ. 500, वीर सेवा मंदिर, दरियागंज नई दिल्ली, 1982 ईसवी 86. अभिलेख - 601, जै. शि. सं., भाग 3
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