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स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ को तीर की तरह असरकारक हुआ, तुरंत बोली - 'आज से आप मेरे भाई मैं आपकी बहन, अब तो मैं साध्वी बनकर अपनी आत्मा का कल्याण करूंगी, और सबको सत्पथ दिखाऊंगी।' उनके इस निश्चय को सुनकर सभी हतप्रभ रह गये, सबने बहुत समझाया किंतु नंदकंवरजी तो वैराग्य के प्रगाढ़ रंग में रंग चुकी थीं। उन्होंने इन्दौर में श्री धर्मदासजी महाराज के संप्रदाय की महासती श्री रायकुंवरजी के पास दीक्षा अंगीकार की, दीक्षा के पश्चात् सभी शास्त्रों का गहन अध्ययन किया। ___ अपने शुद्ध संयम एवं प्रभावशाली प्रवचन की गहरी छाप जमाती हुई सं. 1927 में आप जोधपुर चातुर्मास के लिये पधारी। आपकी आकर्षक प्रवचनशैली को श्रवण करने के लिये हजारों की संख्या में लोग एकत्रित होते, एकबार जोधपुर के दीवान साहब भी राजसी ठाठ के साथ व्याख्यान में आये। उन्होंने चलते हुए सोचा यदि सतीजी मुझे कुछ त्याग करने को कहेंगी तो मैं 'कट्ठ' का त्याग कर दूंगा। व्याख्यान समाप्त हो गया तो दीवानजी चलने को मुड़े, इतने में ही सतीजी ने आवाज लगाई 'दीवानजी! वमन को वापस चाटते हो?' दीवानजी ने पूछा 'कैसा वमन?' सतीजी ने कहा घर से क्या सोच कर निकले थे और प्रत्याख्यान किये बिना ही जा रहे हो? यह वमन चाटने के बाराबर नहीं है क्या? दीवानजी आश्चर्य चकित नतमस्तक हो चरणों में दूर से सिर नवाकर खड़े हो गये। हृदय कमल खिल उठा। बात सच्ची थी। श्रद्धा बैठ गयी। फिर क्या था, दीवान साहब तो व्याख्यान में आते ही थे। अन्य लोग भी अत्यन्त उत्साह के साथ नित्य आने लगे व आध्यात्मिक ज्ञान-गंगा का रसपान करने लगे। सं. 1935 में महासती नंदकंवरजी का अवसान हुआ। आपकी शिष्याओं का विशाल परिवार श्री नंदकुंवरजी की सम्प्रदाय के नाम से प्रसिद्ध है। 64 वर्तमान में इस संघ में 424 साध्वियाँ हैं। इनमें कई साध्वियाँ आगमज्ञा, तत्त्वरसिका तथा विशिष्ट व्यक्तित्व संपन्ना है, किंतु इस संघ की साध्वियों का परिचय उपलब्ध न होने से हम उनका नामोल्लेख मात्र करके संतोष मान रहे हैं।365 : महासती श्री मगनकुंवरजी, श्री सुन्दरकुंवरजी, श्री मनीषाजी, श्री दर्शनाजी आदि-6, श्री आनंदकुंवरजी, श्री कमलेशकुंवरजी, श्री सूर्यप्रभाजी, श्री उषाजी आदि-4, श्री सुशीलाजी, श्री विदुषीकुंवरजी, श्री निर्मलाजी, श्री उर्मिलाजी आदि-5, श्री प्रेमकुंवरजी, श्री भंवरकुंवरजी, श्री शुभमतीजी, श्री विजयप्रभाजी आदि-16, श्री मनोहरकुंवरजी, श्री पतासकुंवरजी, पंकजप्रभा, प्रशांतजी, मधुबाला, श्री सुनीताजी, श्री साधनाजी आदि-7, श्री मदनकुंवरजी, श्री भाग्यवतीजी, श्री महेन्द्रकुमारीजी, श्री जयप्रभाजी आदि-7, श्री कमलावतीजी, श्री लाभुमतीजी, श्री हेमलताजी, श्री तृप्तिजी आदि-8, श्री सुमतिकुंवरजी, श्री पुष्पकुंवरजी, विमलेशजी, भावनाजी तारामतीजी आदि-16, श्री छगनकुंवरजी, आरतीजी, सूर्यशोभाजी, प्रज्ञाजी, कुसुमकान्ताजी, मोहनबालाजी आदि-8, श्री पुष्पकुंवरजी, श्री सुमनवतीजी, ललिताजी, रंजनाजी आदि-7, श्री प्रेमलताजी, श्री अर्पिताजी, श्रीवर्षाजी आदि-4, श्री त्रिशलाकुंवरजी, श्री शांताकुंवरजी, श्री चंदनाजी, श्री साक्षीजी आदि-6, श्री मंजुलाजी, श्री मनिताजी, श्री सौम्यताजी, श्री सुमित्राजी आदि- 6, श्री कमलेशकुंवरजी, श्री सारवंतीजी, श्री रेखाजी, श्री प्रेक्षाजी आदि- 4, श्री चन्दनबालाजी, श्री नीरूबालाजी, सपनाजी, श्री कल्पनाजी आदि-4, श्री कमलेशप्रभाजी, श्री मणिप्रभाजी, भारतीजी आदि-4, श्री स्नेहलताजी, श्री रतनकुंवरजी, श्री मंजुलाजी, श्री सुरेखाजी आदि-7, श्री वंदनाजी, श्री उपमाजी, श्री साधनाजी आदि-3, श्री विनयकुंवरजी, श्री प्रसन्नकुंवरजी, चंचलकुंवरजी, झणकारकुंवरजी आदि-6, श्री लक्ष्मी
364. लेखक-श्री मोतीलाल सुराना, जैन प्रकाश, 1 मार्च 1983, पृ. 25 365. समग्र जैन चातुर्मास सूची, 2004 ई., खंड 1 पृ. 64
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