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6.7.21 आर्या कीकी (17वीं सदी)
इनके लिये 17वीं सदी में 'पुच्छिस्सुणं' की एक प्रति पठनार्थ लिखी गई। प्रति आचार्य सुशीलमुनि आश्रम नई दिल्ली में है।
6.7.24 आर्या रूपां ( 17वीं सदी)
आर्या रूपांजी ने लाखेरी स्थान पर 'अरणिक मुनि सज्झाय' की प्रतिलिपि की । 198
6.7.25 साध्वी पुनमा ( 17वीं सदी)
खरतरगच्छ के उपाध्याय समयसुंदर की 'सांब प्रद्युम्न प्रबन्ध' 17वीं सदी में साध्वी पुनमा ने लिखा । प्रतिलिपि जिनचारित्र संग्रह (पो. 85 नं. भाग 2, पृ. 313) में है 1499
जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
6.7.26 अज्ञातनाम ( 17वीं सदी)
खेमराज ऋषि की शिष्या ने हइबतपुर में अकबर के राज्यकाल में 'जीवाभिगम सूत्र' की प्रतिलिपि की । यह प्रति बी. एल. इन्स्टी. दि. (परि. 1552 ) में सुरक्षित है।
6.7.27 आर्या सरूपा (सं. 1700 )
सं. 1700 में आर्या सरूपा द्वारा लिखित 'निशीथ सूत्र सस्तबक' बी. एल. इन्स्टी. दि. (परि. 1603 ) में श्रेष्ठ स्थिति में मौजूद है।
6.7.28 आर्या भावा (सं. 1706)
जिनोदयसूरि की राजस्थानी भाषा की कृति 'हंसराज वच्छराज चोपई' सं. 1706 में समाना नगर में आर्या भावा ने लिखी । प्रति बी. एल. इस्टी. दि. (परि. 7304) में है।
6.7.29 साध्वी देवकी (सं. 1708)
कड़वागच्छ के आद्य आचार्य कडुआ द्वारा लिखित 'लीलावती सुमतिविलास रास' की प्रतिलिपि सं. 1708 में साध्वी हीरश्री की शिष्या देवकी ने की। यह प्रति डायरा उपाश्रय नो भंडार पालनपुर में है। 500
6.7.30 आर्या रतनबाई (सं. 1707 )
ये साध्वी ज्ञानबाई की संसारपक्षीय सुपुत्री थीं, उनके स्वर्गवास पर भाई किशनदास ने 'उपदेश बावनी' की रचना की। इस बावनी की रचना रतनबाई की स्मृति में, सं. 1707 विजयादशमी को बनाई। ये लुकागच्छीय थीं 150 498. रा. हिं. ह. ग्रं. सू. भाग 5 क्रमांक 1306 ग्रंथांक 6127
499. जै. गु. क. भाग 2, पृ. 313
500. जै. गु. क. भाग 1, पृ. 224
501 श्री सुशील मुनि आश्रम दिल्ली के हस्तलिखित ग्रंथ ( अप्रकाशित)
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