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श्वेताम्बर परम्परा की श्रमणियाँ उस समय 27 साधु एवं प्रवर्तिनी ज्ञानमाला गणिनी, प्रवर्तिनी कुशल श्रीजी, प्रवर्तिनी कल्याणऋद्धि प्रभृति 21 साध्वियाँ भी पूज्यश्री के साथ थीं।
5.1.55 गणिनी धर्ममाला, गणिनी लक्ष्मीमाला (संवत् 1334)
आप श्री जिनप्रबोधसूरिजी से संवत् 1334 मिति ज्येष्ठ कृ. 7 के शुभ दिन शत्रुञ्जय महातीर्थ पर दीक्षित हुई थी, आपके साथ 'साध्वी पुष्पमाला' एवं 'यशोमाला' की भी दीक्षा हुई। संवत् 1375 में जिनचन्द्रसूरि द्वारा इन्हें फलौदी में 'प्रवर्तिनी' पद तथा 'लक्ष्मीमाला गणिनी' को संवत् 1391 पोष कृष्ण 10 सोमवार के दिन जैसलमेर में आचार्य जिनपद्मसूरि जी द्वारा 'प्रवर्तिनी' पद प्रदान किया गया। 5.1.56 श्री कुमुदलक्ष्मी, भुवनलक्ष्मी (संवत् 1339)
श्री कुमुदलक्ष्मी, भुवनलक्ष्मी ने संवत् 1339 ज्येष्ठ कृष्णा 4 के शुभ दिन जाबालिपुर में जिनप्रबोधसूरि जी से दीक्षा अंगीकार की।
5.1.57 गणिनी पुण्यसुंदरी (संवत् 1340)
आपने संवत् 1340 मिती ज्येष्ठ कृष्णा 4 के दिन जैसलमेर में जिनप्रबोधसूरि जी से संयम-रत्न अंगीकार किया। आपके साथ श्री 'रत्नसुंदरी', 'भुवनसुंदरी' एवं 'हर्षसुंदरी' की भी दीक्षा हुई थी। आपको संवत् 1375 माघ शुक्ला 12 को फलौदी पार्श्वनाथ में श्री जिनचन्द्रसूरि जी ने 'प्रवर्तिनी' पद देकर सम्मानित किया था। संवत् 1381 में आप साधुराज वीरदेव कारित कृत युगावतार महारथ तुल्य श्री देवालय में चतुर्विंशति पट्टक की स्थापना के समय श्री जिनकूशलसूरिजी के साथ थीं। यह महोत्सव भीमपल्ली में ज्येष्ठ कृष्णा 5 को हुआ था।
5.1.58 श्री धर्मप्रभा और देवप्रभा (संवत् 1341)
इनकी दीक्षा श्री जिनप्रबोधसूरिजी द्वारा संवत् 1341 फाल्गुन कृष्णा 11 को हुई। ये क्षुल्लिकाएँ थीं।" 5.1.59 गणिनी रत्नमंजरी (संवत् 1342) __आप ठाकुर हांसिल के पुत्ररत्न देहड़ के छोटे भाई स्थिरदेव की पुत्री थी। संवत् 1342 वैशाख शुक्ला 10 के शुभ दिन जाबालिपुर में श्री जिनचन्द्रसूरि ने इन्हें तथा 'जयमंजरी' एवं 'शीलमंजरी' को दीक्षा प्रदान की थी। संवत् 1368 में आपको 'महत्तरा' पद प्रदान कर 'जयर्द्धि महत्तरा' नाम दिया गया। श्री जिनपद्मसूरि जब संवत् 67. (क) ख. बृ. गु., पृ. 55 (ख) स्वर्णगिरि जालोर, पृ. 30 68. (क) ख. बृ. गु., पृ. 55, 66, 86 (ख) खरतरगच्छ दीक्षा नंदी सूची, पृ. 18 69. ख. बृ. गु., पृ. 58 70. (क) ख. बृ. गु., पृ. 58, 78, (ख) ख. दी. नं. सू., पृ. 18 71. ख. बृ. गु., पृ. 55 72. ख. दी. नं. सू., पृ. 17
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