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स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ थीं। "दिव्यविभूति महासती मोहनदेवीजी महाराज का जीवन-दर्शन' आपने ही लिखा है। आप एक अच्छी काव्य रचनाकार भी हैं। सैंकड़ों गीत भजन, पद्य आपके बने हुए हैं। वे 'जैन मोहन पुष्पलता' के नाम से संवत् 1997 में रावलपिंडी से प्रकाशित हुए हैं। आपकी सत्प्रेरणा से 'मोहनदेवी जैन सिलाई शिक्षण केंद्र' दिल्ली में चल रहा है। इस समिति के द्वारा निःशुल्क नेत्र-शिविरों का वर्ष में दो बाद आयोजन किया जाता है, जिसमें हजारों व्यक्ति नेत्र-ज्योति प्राप्त करते हैं। इसी प्रकार 'महासती मोहनदेवी जैन पुस्तकालय, वाचनालय, स्वाध्याय मंडल एवं साप्ताहिक महिला-सत्संग की योजनाएं भी आप से प्रेरित होकर अनवरत च आप की एक शिष्या हैं-उ. प्र. श्री स्वर्णाजी।।40
6.3.2.45 श्री पद्मश्रीजी (सं. 1984)
__ आप देहरादून के सेठ मनसबरायजी की पुत्री एवं सुनाम निवासी साधुरामजी की धर्मपत्नी थी, पति के देहावसान के पश्चात् सं. 1984 को मालेरकोटला में महासती हुक्मदेवीजी के पास दीक्षा ग्रहण कर ली। आपने आगमों का खूब स्वाध्याय किया, बेले, तेले, पंचोले, आठ, दस, ग्यारह, पंद्रह तप भी किया, महीने में पांच-छह उपवास तो करती ही थीं। कंठ बड़ा सुरीला था, शास्त्र के आधार पर ही प्रवचन करती थीं। तीतरवाड़ा में 52 वर्ष की उम्र में इनका स्वर्गवास हुआ। इनकी दो शिष्याएँ थीं-उपप्रवर्तिनी श्री पवनकुमारीजी एवं श्री सत्यवतीजी।।41
6.3.2.46 श्री मनोहरमतीजी (सं. 1984)
आप भवानी (हिसार) के लाला फकीरचंदजी ओसवाल की सुपुत्री थीं, आपका विवाह दादरी में ला. शेरसिंहजी रईस के लघु भ्राता डालूरामजी से हुआ, उनके स्वर्गवास के पश्चात् सं. 1984 में चैत्र शु. 5 को दादरी में ही दीक्षा अंगीकार कर श्री शीतलमतीजी की शिष्या बनीं। आपने अपनी एकमात्र प्रिय पुत्री का मोह त्याग कर दीक्षा ग्रहण की थी। श्रमणियों की त्यागवृत्ति का यह अनूठा उदाहरण आपके जीवन में दृष्टिगोचर होता है, आपकी तीन शिष्याएँ बनी-श्री सुदर्शनाजी, श्री तिलकाजी श्री जगदीशमतीजी, तिलका जी की एक शिष्या थी-प्रकाशवतीजी।।42
6.3.2.47 श्री सुदर्शनावतीजी (सं. 1986 के पश्चात्)
आप चरखी दादरी के सुप्रसिद्ध चौधरी रामप्रसादजी ओसवाल रईस की सुपुत्री थीं, आपका जन्म सं. 1959 माघ मास में हुआ। आपका विवाह सं. 1972 को हुआ। पतिवियोग के पश्चात् आप संवत् 1986 आषाढ़ शुक्ला 5 को दीक्षित होकर श्री मनोहरमतिजी की शिष्या बनीं। आप की शिष्या फूलमतीजी थीं।143
6.3.2.48 उपप्रवर्तिनी श्री जगदीशमतीजी (सं. 1987)
आपका जन्म वि. सं. 1979, चैत्र शुक्ला प्रतिपदा के दिन अलवर में हुआ। आपके पिता लाला धर्मचंदजी जैन जौहरी होने के साथ-साथ रियासत अलवर महाराजा के दीवान भी थे, माता का नाम रामाबाई था। जब आप 140. महासती केसरदेवी गौरव ग्रंथ, पृ. 378 141. संयम गगन की दिव्य ज्योति, पृ. 226-35 142. महासती द्रौपदांजी का जीवन चरित्र, पृ. 211 143. वही, पृ. 211
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