________________
स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ
6.3.2.94 श्री विजयश्रीजी 'आर्या' (सं. 2024 से वर्तमान)
आपका जन्म उदयपुर (राज.) में सं. 2008 माघ शु. पूर्णमासी के दिन श्री आनंदीलालजी मेहता के यहां हुआ। विजयादशमी सं. 2024 को शेरे पंजाब श्री प्रेमचंदजी महाराज से दिल्ली में दीक्षित होकर अध्यात्मयोगिनी श्री कौशल्याजी की शिष्या बनीं। आप अध्ययनशीला साध्वी हैं, आपने पाथर्डी बोर्ड से जैन सिद्धान्ताचार्य, हैदराबाद से हिंदी भूषण, पूना से संस्कृत-प्राकृत एवं मैसूर विश्वविद्यालय से एम. ए. की परीक्षाएँ दी, उक्त सभी परीक्षाओं में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त किया। एम. ए. में कर्नाटक राज्यस्तर पर सर्वोच्च आने के उपलक्ष में आप चार स्वर्णपदक से सम्मानित हुईं, विभिन्न विश्वविद्यालय से साध्वी जीवन में छह स्वर्णपदक प्राप्त करने वाली आप प्रथम साध्वी हैं। आपका प्रकाशित साहित्य-महासती केसरदेवी गौरव ग्रंथ, अध्यात्म-योगिनी महाश्रमणी, प्रवचन-सौरभ (मराठी), महासागर के मोती, अंतर की पुकार, आर्या के स्वर, तीर्थंकर प्रदीपिका, गुरू-प्रसाद, मुक्त-निर्झर, मंगल-प्रभात, सचित्र सुखविपाक, सचित्र जैन पच्चीसबोल तथा संपादित साहित्य-श्री ऋषभदेव एक परिशीलन (द्वि. सं.), विशालवाणी, आनंद जीवनचर्या आदि प्रकाशित है। आपके सदुपदेशों से प्रेरित होकर अनेक संस्थाएँ सक्रिय कार्य कर रही हैं, उनमें प्रमुख हैं-महावीर जैन पुस्तकालय (आलंदी, बैंगलोर, मैसूर, विजयवाड़ा), देवर्द्धिगणी पुस्तकालय भावनगर, केसरदेवी जैन पुस्तकालय साहरनपुर, श्रमणसंघीय श्राविका संघ उदयपुर, आत्मानंद देवेन्द्र निर्धन सहायता कोष (रजि.) उदयपुर, विजयश्री धार्मिक उपकरण भंडार धूलिया, जैन स्थानक सातपूर (नासिक), अरिहंत गौसेवा ट्रस्ट एवं गौशाला नाशिक, जैन स्थानक सातवपुर (पूना), ब्राह्मी कन्या परिषद (नासिक, घोड़नदी आलंदी) पद्मावती महिला मंडल यशवंतपुर (बैंगलोर) श्री विजय महिला मंडल, श्रीरामपुरम (बैंगलोर), विजयवाड़ा, शाकाहार समिति देऊर, (महा.) इत्यादि अग्रणी के रूप में विचरण करते हुए आपने 24 घंटे व 12 घंटे के 11 साप्ताहिक धार्मिक शिविर, कई स्वास्थ्य कैंप, महिला सम्मेलन, तप-जप, प्रतियोगिताएं एवं प्रश्नमंच आदि विविध धार्मिक सामाजिक आयोजन करवाये। सैंकड़ों लोगों को मांस, मदिरा, पान पराग, गुटका, रेशम आदि का त्याग करवाया। तपस्वी श्री चेतनमुनिजी को दीक्षा की प्रेरणा आपसे ही प्राप्त हुई है। आपका विचरणक्षेत्र राजस्थान, मध्यप्रदेश, मालवा, दिल्ली, उत्तरांचल, हिमाचल, हरियाणा, पंजाब, जम्मू, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, गुजरात, काठियावाड़, सौराष्ट्र आदि सुदूर क्षेत्रों में हुआ है। आपने 1 से 9 उपवास की लड़ी, 1008 एकासन 108,51,31, 31 एकासणे, 1 से 21 तक एकासण की लड़ी, उपवास से वर्षीतप. सैंकडों आयंबिल. उपवास. बेले तेले किये हैं। आपकी 3 शिष्याएँ हैं-श्री प्रियदर्शनाजी, श्री प्रतिभाश्रीजी, श्री तरूलताश्रीजी। 6.3.2.95 डॉ. श्री रविरश्मिजी. (सं. 2027 से वर्तमान)
आपका जन्म पंजाब प्रान्त के फिरोजपुर जिले में मुक्तसर ग्राम में संवत् 2015 को हुआ, घोरतपस्विनी श्री हेमकुंवरजी महाराज आपकी गुरूणी हैं, 13 वर्ष की लघुवय में सं. 2027 में श्री मंगलमुनि से दीक्षा पाठ पढ़ा। आप अनेक भाषाओं की ज्ञाता तथा आगम, न्याय, दर्शन आदि की गहन अध्येता हैं। आपने ‘परमाणु विज्ञान' पर शोध प्रबंध लिखकर विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से पी. एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। आपकी दो शिष्याएँ हैं-श्री प्रदीपरश्मि व श्री राकेशरश्मि। रजतरश्मि, निधिरश्मि, यशिमारश्मि, देशनारश्मि और कौमुदीरश्मि पौत्र शिष्याएँ हैं।
191. महासती केसरदेवी गौरव-ग्रंथ, पृ. 416
599
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org