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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास जिनेश्वरी देवी तरूण मंडल, मालेरकोटला में पार्वती महिला मंडल व वर्धमान युवक मंडल, हनुमानगढ़ में स्वर्ण युवक मंडल, मानसा में स्वर्ण सेवा सोसायटी, खरड़ में होम्योपैथिक डिस्पैंसरी, जेतों में स्वर्ण डिस्पैंसरी, हुनमानगढ़ में स्वर्ण कमल डिस्पैंसरी, गीदड़वाहा में स्वर्ण-सुधा पब्लिक स्कूल व जैन सभा, पद्मपुर एवं पटियाला में डिस्पैंसरी आदि मंडल व संस्थाएँ आपकी सद्प्रेरणा से कार्यरत हैं।199
6.3.2.104 श्री किरणजी (सं. 2036 से वर्तमान)
आपका जन्म संवत् 2011 अगस्त 8 को मेरठ के श्री विद्यासागरजी लाहौर वाले की धर्मपत्नी सुश्राविका त्रिशलादेवी जैन की कुक्षि से हुआ। श्री प्रवीणकुमारीजी के पास संवत् 2036 नवंबर 26 को कोल्हापुर रोड दिल्ली में पंडित रत्न श्री लाभचंदजी महाराज के मुखारविंद से दीक्षा ग्रहण की। आप मौनप्रिय और तपस्विनी साध्वी हैं। 10 वर्ष अखंड मौनव्रत की साधना एकासन के साथ की, अभी भी मौनव्रत चालु है। इसके अतिरिक्त 131 एकासन, 51, 71 आयंबिल 9, 15 उपवास, 25 मौन तेले, पुष्यनक्षत्र, ज्ञानपंचमी आदि तपाराधनाएँ की हैं।200 6.3.2.105 डॉ. श्री शुभाजी (सं. 2037 से वतर्मान)
इनका जन्म संवत् 2015 जंडियाला गुरू में श्री हुकुमतराय ढींगर के यहां हुआ। संवत् 2037 मार्च 3 को अंबाला में डॉ. श्री सरिताजी के पास इन्होंने दीक्षा अंगीकार की। ज्ञान व तप का अद्भुत समन्वय इनके जीवन में दिखाई देता है। आगम, न्याय, व्याकरण, ज्योतिष ज्ञान के साथ इन्होंने सन् 1996 मेरठ विश्वविद्यालय से "सुदंसणचरिउ' में जैनधर्म दर्शन और संस्कृति विषय लेकर पी. एच. डी. की उपाधि प्राप्त की। इसी प्रकार तप के क्षेत्र में इन्होंने 15 उपवास, 17 अठाइयाँ, मासक्षमण, 150 तेले, कई बेले उपवास आदि तथा आयंबिल के 3 मासक्षमण, नवपद ओली, 81 आयंबिल, ज्ञानपंचमी, पोषदशमी, पुष्यनक्षत्र आदि विविध तपस्याएँ की। 15 वर्षों से वर्षीतप की आराधना भी चालु है।2014
6.3.2.106 श्री करूणाजी (सं. 2038 से वर्तमान)
श्री करूणाजी का जन्म कोटकपूरा (पंजाब) संवत् 2017 में श्रीमती शांतिदेवी तथा श्री चिरंजीलाल गोयल के यहां हुआ। संवत् 2038 अप्रेल 22 को बठिण्डा में उपाध्याय श्री मनोहरमुनिजी से दीक्षित होकर श्री कुसुमलताजी की शिष्या बनीं। इन्होंने अनेक आगमों के अध्ययन के साथ हिंदी व संस्कृत में एम. ए. किया है। ये विदुषी, प्रवचनकर्ती, स्वाध्याय प्रेरिका हैं। तथा 'प्रवचन प्रभाविका' 'जैन ज्योति' पद से समलंकृत हैं।202 6.3.2.107 श्री सुधाजी (सं. 2039 से वतर्मान)
सफीदों मण्डी में श्री लालचन्दजी जैन के यहां ई. 1956 में आपका जन्म हुआ। श्री सुंदरीजी महाराज की शिष्या बनकर आपने तप आराधना में अपने जीवन को संलग्न किया। आपने 13 तेले व एक वर्षीतप अनेक अठाइयाँ की, चार वर्ष एकासने किये, वर्तमान में भी एकांतर तप चलता है।203 202. श्री कुसुमाभिनन्दनम्, परिशिष्ट भाग 203. संयम-सुरभि, पृ. 161
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