________________
श्वेताम्बर परम्परा की श्रमणियाँ
5.1.2.44 डॉ. हेमप्रज्ञाश्रीजी ( संवत् 2035 )
आपका जन्म संवत् 2016 में हुआ, दीक्षा संवत् 2035 में ली। सन् 1988 में अहिल्यादेवी जैन विश्वविद्यालय इन्दौर से आपने 'कषाय' विषय पर महानिबंध लिखकर पी. एच. डी. की उपाधि प्राप्त की। 213
5.1.2.45 डॉ. मधुस्मिताश्रीजी ( संवत् 2038 )
आपका जन्म संवत् 2013 तथा दीक्षा संवत् 2038 मई 25 को हुई। आप श्री प्रवर्तिनी विचक्षणश्रीजी की शिष्या हैं। इन्होंने 'जैन पुराणों में राजनीति' विषय पर गुजरात युनिवर्सिटी से सन् 1985 में पी. एच. डी. की डिग्री प्राप्त की। 214
5.1.2.46 डॉ. सौम्यगुणाश्रीजी ( संवत् 2040 )
आपका जन्म संवत् 2027 व दीक्षा संवत् 2040 जुलाई 25 को हुई। आपने 'विधिमार्ग प्रपा' विषय पर जयपुर विश्वविद्यालय से सन् 2003 में पी. एच. डी. की उपाधि प्राप्त की। आप श्री शशिप्रभाजी की शिष्या हैं | 215 5.1.2.47 डॉ. विनीतप्रज्ञाजी ( संवत् 2041 )
आपका जन्म संवत् 2028 में और दीक्षा संवत् 2041 मार्च 2 को हुई। आपको गुजरात युनिवर्सिटी से सन् 2001 में 'उत्तराध्ययन सूत्र' पर पी. एच. डी. की उपाधि प्रदान की गई। 216
5.1.2.48 डॉ. हेमरेखाश्रीजी ( संवत् 2041 )
आपका जन्म संवत् 2027 में और दीक्षा संवत् 2041 मई 1 को हुई आपने 'जैनागमों में स्वर्ग-नरक की विभावना' विषय लेकर गुजरात विश्वविद्यालय से सन् 2003 में पी. एच. डी. की उपाधि प्राप्त की 1217
5.1.2.49 डॉ. श्री संयमज्योतिजी ( संवत् 2047 )
आपका जन्म संवत् 2025 में हुआ, तथा दीक्षा संवत् 2047 जनवरी 28 को हुई। आप प्रवर्तिनी श्री सज्जन श्रीजी की विदुषी शिष्या है। आपने 'जैनदर्शन में अतीन्द्रिय ज्ञान' पर शोध प्रबंध लिखा है। जोधपुर विश्वविद्यालय ने सन् 1999 में आपको पी. एच. डी. की उपाधि से अलंकृत किया | 2018
5.1.2.50 डॉ. श्री स्मितप्रज्ञाश्री (संवत् 2051 से वर्तमान)
आपका जन्म संवत् 2017 एवं दीक्षा संवत् 2051 अप्रैल 18 को हुई थी। आप शतावधानी श्री मनोहर श्रीजी की शिष्या हैं। आपने 'आचार्य जिनदत्तसूरि का जैनधर्म एवं साहित्य में योगदान' विषय लेकर गुजरात वि. वि. से सन् 1999 में पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की है। शोधप्रबन्ध 5 अध्यायों में विभक्त है। 219
213-218. सुभाष जी एडवोकेट, जालना के संग्रह से प्राप्त
219. विचक्षण स्मृति प्रकाशन, खरतरगच्छ ट्रस्ट, नवरंगपुरा अमदा., ई. 1999
Jain Education International
307
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org