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स्थानकवासी परम्परा की श्रमणियाँ
लाभकुंवरजी (सं. 1985), श्री रमणीककुंवरजी (सं. 1989), श्री सज्जनकुंवरजी (सं. 1991) श्री चन्दनबालाजी, श्री उज्जवलकुमारीजी (सं. 1991) श्री गुलाबकुंवरजी (सं. 1992), श्री माणकुंवरजी (सं. 1993)58 6.3.1.33 प्रवर्तिनी श्री हगामकुंवरजी (सं. 1960-स्वर्गस्थ)
प्रतापगढ़ (राज.) के श्री माणकचंदजी चंडालिया व अमृतबाई की ये आत्मजा थीं। मालोट निवासी गुलाबचंदजी कोठारी के साथ अल्पकाल का वैवाहिक संबंध रहा। संवत् 1960 में श्री कासाजी के पास दीक्षा अंगीकार की। आप साहसी, भद्रपरिणामी एवं विदुषी साध्वी थीं। मालवा, मेवाड़, वागड़, वरार, म. प्र. झार्डा आदि ऐसे प्रदेशों में आपने विचरण कर धर्मप्रचार किया, जहां संत-सतियों का आवागमन नहीं होता था, सं. 1987 के ऋषि संप्रदाय के सती सम्मेलन में आप 'प्रवर्तिनी पद' से अलंकृत की गईं। आप की नौ विदुषी शिष्याएँ हुईं हैंश्री नजरकुंवरजी, श्री छोटे हगाम कुंवरजी, श्री केसरजी, श्री हुलासकुंवरजी, श्री कस्तूरांजी, श्री दाखाजी, श्री जानकुंवरजी, श्री सुंदरकुंवरजी, श्री नन्दकुंवरजी।” 6.3.1.34 प्रवर्तिनी श्री राजकुंवरजी (सं. 1962-स्वर्गस्थ)
आपका जन्म वांबोरी (अहमदनगर) निवासी श्रीमान् चन्दनमलजी मूथा के यहां तथा विवाह पूना निवासी श्री रतनचंदजी मुणोत के साथ हुआ। सं. 1962 मार्गशीर्ष शु. 3 को श्री रत्नऋषिजी म. के मुखारविंद से आपकी दीक्षा घोड़नदी में हुई, आप श्री रामकुंवरजी की शिष्या बनीं। आप बड़ी ही सुशील, सरलस्वभावी, सेवाभावी आत्मार्थिनी साध्वीजी थीं। सं. 2005 को घोड़नदी में आचार्य आनंदऋषिजी द्वारा आप प्रवर्तिनी पद से अलंकृत की गई।
6.3.1.35 श्री शांतिकुंवरजी (सं. 1962 से 67 के मध्य)
आप बाम्बोरी निवासी श्री सरूपचंदजी की सुपुत्री थीं। लघुवय में ही आपने श्री राजकुंवरजी म. के पास दीक्षा अंगीकार की। आपने शास्त्रज्ञान के अतिरिक्त लघुसिद्धान्कौमुदी भी कंठस्थ की। अतः संस्कृत साहित्य का आपको अच्छा अभ्यास था। आपकी प्रकृति अत्यंत कोमल, सरल और शांत थी। सदा ज्ञान-ध्यान में लीन, सांसारिक वार्तालाप से उदासीन रहा करती थीं। वस्तुतः आप आत्मार्थिनी साध्वी थीं। प्रभावशाली प्रवचनों द्वारा आपने अपने धर्म की खूब प्रभावना की थी।
6.3.1.36 श्री रायकुंवरजी ( - सं. 1985)
__ आपने श्री नंदूजी महासती से दीक्षा ग्रहण की। सं. 1984 में बीमार हो जाने पर कोपरगांव में श्री अमोलक ऋषि जी महाराज के श्री मुख से 43 दिन के संथारे के साथ चैत्र शु. 4 सं. 1985 में स्वर्गस्थ हुईं। आपके संथारे से तप-त्याग एवं धर्म की महती प्रभावना हुई। आपकी दीक्षा सं. 1954 से 1963 के मध्य किसी वर्ष हुई थी।62 58. ऋ. सं. इ., पृ. 286 59. ऋ. सं. इ., पृ. 349 60. ऋ. सं. इ., पृ. 394 61 ऋ. इ., पृ. 316 62. ऋ. सं. इ., पृ. 353
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