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श्वेताम्बर-परम्परा की श्रमणियाँ
5.4.19 साध्वी गुणश्री (संवत् 1778)
आप अंचलगच्छ के महोपाध्याय रत्नसागर जी की शिष्या थीं। आपने संवत् 1778 कपड़वंज चातुर्मास में 'गुरूगुण चौबीसी' नाम की गंहुली रची है, इसमें आचार्यश्री के गुणों की स्तुति की गई है।12
5.4.20 जीवलक्ष्मी
सहिजसुंदर रचित 'सूडा साहेली प्रबन्ध' अंचलगच्छ के महिमातिलक द्वारा अहमदाबाद में लिखकर जीवलक्ष्मी साध्वी जी को पढ़ने देने का उल्लेख है, प्रति खंभात में 'लावण्य विजयसूरि ज्ञान भंडार' में संग्रहित है। 13
अंचलगच्छ में संवत् 1778 के पश्चात् करीब डेढ़सौ वर्षों तक के साध्वी संघ का इतिहास विलुप्त सा है। संवत् 1955 में साध्वी शिवश्रीजी एवं पश्चात् प्रवर्तिनी गुलाबश्रीजी का उल्लेख 'श्रमणी-रत्नों' ग्रंथ में प्राप्त हुआ
5.4.21 प्रवर्तिनी महत्तरा गुलाबश्रीजी (संवत् 1955-2022 )
संवत् 1935 में कच्छ देश के आसंबिया ग्राम में शेठ श्री हीराकुरपाल के यहाँ आपका जन्म हुआ। विवाह के पश्चात् वैधव्य से वैराग्य के बीज प्रस्फुटित हुए और अचलगच्छाधिपति श्री गौतमसागरसूरि जी की आज्ञानुवर्तिनी साध्वी शिवश्रीजी के पास संवत् 1955 फाल्गुन शुक्ला 13 को पालीताणा में भव्य समारोह पूर्वक दीक्षा अंगीकार की। आपकी सरलता, वत्सलता, निरभिमानता को देखकर संवत् 1985 में प्रवर्तिनी महत्तरा पद से अलंकृत किया गया। 87 वर्ष की आयु में आपका स्वर्गवास हुआ।14
5.4.22 श्री लाभश्रीजी (संवत् 1960-2028)
नम्र सरल और सौम्यमूर्ति श्री लाभश्रीजी का जन्म संवत् 1938 में टुंडा गाँव में हुआ। पिता का नाम कचरालाल जी और माता का जीवीबाई था। आशंबिया निवासी नरसिंहभाई के साथ विवाह संबंध हो जाने पर भी पूर्व संस्कारवश वैराग्यभाव से आपने श्री गुलाबश्रीजी के पास संवत् 1960 वैशाख शुक्ला 8 को दीक्षा अंगीकार की। वर्षीतप, अठाई, 16 उपवास, बीसस्थानक, वर्धमान तप की ओली आदि विविध तपस्याएँ कर आत्मा को तेजस्वी बनाया। संवत् 2028 फाल्गुन शुक्ला 8 को मांडवी में स्वर्गवास हुआ।514
5.4.23 श्री रूपश्रीजी (संवत् 1971-2003)
कच्छ के हालाई विभाग में 'शेरडी' गाँव संवत् 1953 में रूपश्रीजी का जन्म हुआ। पिता कुरपालभाई माता खेतबाई थीं, रतडिया निवासी भाणजी देराज के साथ विवाह के पश्चात् वैधव्य से विरक्त बनी इस आत्मा ने संवत् 512. अंचल. दिग्दर्शन पृ. 413 513. जै. गु. क. भाग 1, पृ. 263 514. जैन शासन नां श्रमणीरत्नों, पृ. 774
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