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श्वेताम्बर-परम्परा की श्रमणियाँ 5.8.79 साध्वी श्री सिद्धश्रीजी (संवत् 1916)
आपका संवत् 1916 में रचित 'प्रतापबाबूसिंह रास' प्रकाशित है इसमें ऊजीमगंज के धर्मप्रेमी बाबू प्रताप सिंह जी के धर्मकार्यों का उल्लेख है।661
5:8.80 प्रवर्तिनी श्री उदयसुंदरीजी (संवत् 1928)
तपागच्छीय सोमविमलसूरि कृत 'मनुष्य भवोपरि दश दृष्टांत नां गीतो' (रचना संवत् 1597 से 1637 मध्य) मुनि ज्ञानसहज ने संवत् 1928 अमदाबाद में लिखकर प्रवर्तिनी उदयसुंदरी की शिष्या को पठनार्थ दिया। इसकी प्रति भांडारकर इंस्टीट्यूट, पूना (नं. 290) में है।662
उपसंहार
श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्रमणियाँ सुदूर अतीत काल से आज तक उत्कृष्ट तपाराधना में संलग्न रहकर जन-जन के लिये तीर्थ स्वरूपा बनी हैं। इन्होंने जैन संघ के शेष तीन अंगों को सामाजिक धार्मिक साधना में प्रेरक शक्ति बनकर नींव की ईंट का काम किया है। धर्म, संघ व तीर्थ की उन्नति की ये मुख्य आधार रही हैं, समय-समय पर क्रियोद्धार के कार्यों में आचार्यों की सहयोगिनी बनी है। जब मुद्रणकला का अस्तित्व नहीं था उस समय सैंकड़ों हस्तलिखित प्रतियाँ लिखकर इन्होंने जिनवाणी की सुरक्षा में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। कितनी ही ताड़पत्रियाँ स्वयं ने लिखी, लिखकर योग्य विद्वान् व्याख्याता मुनियों को अर्पित की। आज सैंकड़ों हस्तलिखित प्रतियाँ श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्रमणियों की प्राप्त होती हैं, जिनमें इनकी साहित्य-साधना, धर्म व तीर्थ के प्रति अनन्य निष्ठा की झलक मिलती है। आज भी साहित्य की विविध विधाओं में इनका प्रकृष्ट चिंतन एवं संस्कृत-प्राकृत आदि भाषाओं का गूढ़ ज्ञान परिलक्षित होता है। शेष श्रमणियों का परिचय हम तालिका में दे रहे हैं।
661. अगरचंद जी नाहटा, का लेख, श्वे. साध्वियों में 662. जै. गु. क. भाग 2, पृ. 8
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