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5. 8.60 साध्वी श्री भागलक्ष्मी (संवत् 1768 )
गुणसेन रचित 'फलवर्धी पार्श्वनाथ छंद' की संवत् 1768 की प्रतिलिपिकर्त्री के रूप में साध्वी भागलच्छी का नाम है 1645
5.8.61 साध्वी श्री जीवांजी ( संवत् 1773 )
खरतरगच्छ के उपाध्याय समयसुंदर कृत 'प्रियमेलापक रास' ( रचना संवत् 1672) की प्रतिलिपि संवत् 1773 फाल्गुन शु. 3 उदासर में लखणसी ने साध्वी जीवा के लिये लिखी । यह प्रति कृपाचंद्रसूरि नो भंडार बीकानेर (पो. 46 नं. 836) 1646
5. 8.62 साध्वी श्री लच्छीजी ( संवत् 1780 )
श्री अमरसागर की राजस्थानी भाषा में रचित 'रत्नचूड़ चौपई' (रचना संवत् 1744 ) की प्रतिलिपि संवत् 1780 को आगरा में कुशलसिद्धि की शिष्या साध्वी लच्छी ने की। यह प्रति बी. एल. इन्स्टी. दि. (परि. 7139) में सुरक्षित है।
जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
5. 8.63 आर्या श्री रहीजी ( संवत् 1780 )
श्री विमलसोमसूरि रचित 'प्रभासस्तवन' की प्रतिलिपि पं. कुशलधर्म ने संवत् 1780 पोष शु. 1 मंगलवार को अहमदाबाद में करके आर्या रही को वाचनार्थ दी। यह प्रति 'डायरा उपाश्रय नो भंडार' पालनपुर (दा. 41 नं. 109) में है। 647
5. 8.64 साध्वी श्री कस्तूरांजी ( संवत् 1784 )
खरतरगच्छीय कनकसोम रचित 'आर्द्रकुमार चौपाई' (संवत् 1644) की प्रतिलिपि पं. रत्नसी ने संवत् 1784 मृगशिर शु. 3 को साध्वी कस्तूरां के वाचनार्थ की। प्रति अभय जैन ग्रंथालय बीकानेर (नं. 3198) में है 1648
5. 8.65 साध्वी श्री कस्तूराजी (संवत् 1785 )
तपागच्छीय उदयरत्नसूरिकृत 'स्थूलिभद्ररास' (संवत् 1759 ) की प्रतिलिपि पं. रतनसी ने साध्वी कस्तूरां के वाचनार्थ लिखी। प्रति अभय जैन ग्रंथालय बीकानेर (नं. 3511) में है 1 649 एक ही ग्रंथालय में प्राप्त एक ही पंडित प्रतिलिपिकृत प्रति की अधिकारिणी साध्वी कस्तूरां जी एक ही प्रतीत होती हैं।
645. राज. हिं. ह. ग्रं. सू. भाग 6, क्रमांक 1497 ग्रंथांक 8879
646. जै. गु. क. भाग 2, पृ. 328
647. जै. गु. क. भाग 5, पृ. 309 648. जै. गु. क. भाग 2, पृ. 149 649. जै. गु. क. भाग 5, पृ. 84
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