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श्वेताम्बर परम्परा की श्रमणियाँ 5.3.13.3 प्रवर्तिनी श्री लावण्यश्रीजी (संवत् 1993 - स्वर्गस्थ)
आरंभडा गाँव में जन्म, माता जड़ावबहन पिता मणिलाल गांधी, भोंयणी तीर्थ में संवत् 1993 कृ. 11 को दीक्षा, श्री जयश्रीजी माता व गुरूणी। तपस्या-डेढ़ मासी, दो मासी, अढ़ीमासी, तीन मासी, चारमासी, पांचमासी दो बार, छ: मासी 2, वर्षीतप, कर्मसूदन, लोकनालि, जिनगुणसंपत्ति, नवकारपद, मेरूमंदर, बीस स्थानक, कल्याणक, अष्टारिका, 170 जिन, 45 आगम तप, 96 जिनालय तप, 25 वर्धमान ओली, अठाई आदि तप। प्रशांत प्रकृति, कुशाग्रबुद्धि, वाद-विवाद से दूर, तप त्याग में लीन व्यक्तित्व था। चार वर्ष की अवधि में 88 से 108 शिष्याओं की अभूतपूर्व वृद्धि की 5.3.13.4 श्री कंचनश्रीजी (संवत् 2002 से वर्तमान)
जन्म संवत् 1979 थरा गाँव, पिता मणिलाल, माता मणिबहन, वैधव्य के पश्चात् संवत् 2002 थरा में मृगशिर शुक्ला 10 को दीक्षा, गुरूणी श्री चंपक श्रीजी। सेवाभाविनी, नम्र स्वभावी, निस्पृह आत्मलीन साध्वी जी।439 5.3.13.5 श्री हर्षलताश्रीजी (संवत् 2003-36)
कर्मठ कर्मयोगिनी, कठोर तपस्विनी अप्रमत्त साधिका के रूप में प्रख्यात हर्षलताश्रीजी का जन्म संवत् 1964 शिहोर में हुआ। पिता नेमचंद गगजी तथा माता कुंकुबहन थी, भावनगर निवासी साकरचंद भाई के साथ विवाह संबंध होने पर ये दो पुत्र और एक पुत्री की माता बनीं, तभी साकरचंद भाई का स्वर्गवास हो गया, हर्षलताश्रीजी ने अपने वैधव्य को सरल और सक्षम बनाने के लिये ओलियां, मेरूतेरस, चैत्री पूनम, वर्षीतप, कर्मसूदन आदि तप किया, पुत्री हंसा 16 वर्ष की हुईं, तो उसके साथ संवत् 2003 पोष कृष्णा 11 शिहोर में दीक्षा अंगीकार की, हंसा 'हेमलताश्रीजी' नाम से अलंकृत हुईं। दोनों ने अपने संयमी जीवन को भक्ति व तप-त्याग में लगाना प्रारंभ किया। हर्षलताश्रीजी ने वर्धमान तप की 61 ओली, बीसस्थानक तथा विविध तपस्याए की, जैसलमेर में इन्होंने डेढ़ मास में 6 हजार जिनबिम्बों के सम्मुख चैत्यवंदन किया। इनकी प्रेरणा से दो बहनें, तीन पुत्रियाँ, भाई-भाभी आदि लगभग 45 स्वजन संयम की उत्कृष्ट साधना में संलग्न हैं। इस प्रकार सबके लिये प्रेरक बनकर अंत में इन्होंने संवत् 2036 को समाधि पूर्वक देहत्याग किया।40 5.3.13.6 श्री हेमलताश्रीजी (संवत् 2003 से वर्तमान)
जन्म 1986 भावनगर पिता साकरचंदभाई, माता उत्तमबहन, दीक्षा संवत् 2003 पोष कृष्णा 11 शिहोर में, गुरूणी श्री हर्षलताश्रीजी। ज्ञानोपासना के साथ वैयावृत्त्य-वृत्ति में उत्तम रूचि, बीस स्थानक, चत्तारि अट्ठ दस दोय, 500 आयंबिल, वर्धमान तप की 36 ओली आदि तप किया। जहां भी विचरण किया अनेक बहनों, बालाओं को तप-त्याग और वैराग्य से जोड़ा। हेमलताश्रीजी का 19 शिष्या-परिवार है, उनमें 11 का विवरण प्राप्त हुआ है
438. वही, पृ. 692-93 439. वही, पृ. 695 440. वही. पृ. 685-89 441. वही, पृ. 689-90
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