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श्वेताम्बर परम्परा की श्रमणियाँ
मुंबई घाटकोपर, गुरूणी श्री नेमश्रीजी । प्रतिदिन 3000 श्लोक का स्वाध्याय, 20 माला नवकार मंत्र की व 10 घंटा मौन यह नित्य नियम, पालीताणा की 99 यात्रा 8 बार, छट्ट के साथ सात यात्रा, शिखरजी की 14 दिन में 14 यात्रा, गिरनार की 15 यात्रा 15 दिन में, वर्धमान ओली 105, सहस्रकूट तप, कल्याणक, दो वर्षीतप, छः मासी, चारमासी. तीनमासी, अढ़ीमासी, डेढ़मासी, समवसरण, श्रेणीतप, भगवान महावीर के 229 छट्ठ, मासखमण, सिद्धितप, 45 उपवास, तेरह काठिया के अट्ठम, एकांतर 500 आयंबिल, नवपद ओली, बीस स्थानक, पंचमी, एकादशी, 14 वर्ष हरी सब्जी व आम का त्याग, इस प्रकार मानो तप की प्रतिमा ही हो, अंत में नवकार मंत्र के 68 अक्षर की आराधना हेतु 68 उपवास प्रारंभ किये, किंतु 61 वें उपवास में ही स्वर्गवासिनी हो गईं 1451 5.3.14.9 श्री हेतश्रीजी ( संवत् 2016 - स्वर्गस्थ )
जन्म संवत् 1934 जामनगर, पिता शेठ प्रागजीभाई, माता कड़वीबहन पति लक्ष्मीचंदभाई, वैधव्य के पश्चात् संवत् 2016 कार्तिक कृष्णा 7 को श्री गुणश्रीजी के पास दीक्षा अंगीकार की । इनके सदुपदेश से जामनगर, राणपुर, सुरेन्द्रनगर, भावनगर, चूड़ा आदि स्थानों पर महिला मंडल स्थापित हुए । इनकी शिष्या श्री वल्लभ श्रीजी ध्रांगध्रा के श्री उजमशीभाई की कन्या थी, वे सुरेन्द्रनगर ईस्वी 2002 में स्वर्गवासिनी हुईं 1452
5.3.14.10 श्री वारिषेणाश्रीजी ( सवंत् 2017-2035 )
जन्म संवत् 1993 कच्छ - मांडवी, पिता श्री नेमीदास, माता गुलाबबहन, दीक्षा संवत् 2017 माघ शुक्ला 10 घाटकोपर मुंबई, गुरूणी श्री मंजुला श्रीजी । आगम ग्रंथों का गहन अध्ययन, अंग्रेजी, मराठी, संस्कृत, गुजराती, हिन्दी, तमिल आदि बहुभाषाविद् । प्रिय शिष्या श्री वज्रसेनाश्रीजी (संवत् 2017 ) आदि 18 शिष्याएँ, संवत् 2035 खेड़ा में दिवंगत 1453
5.3.14.11 श्री सुमतिश्रीजी ( संवत् 2017 से वर्तमान)
बोटाद के वीशा श्रीमाली श्री डुंगरशीभाई सलोत की सुपुत्री, पालीताणा में संवत् 2017 फाल्गुन कृष्णा 9 को दीक्षा, श्री वल्लभ श्रीजी गुरूणी । तप के क्षेत्र में वर्षीतप 16 उपवास आदि तपस्याएँ की । वर्तमान में नारी समाज में धार्मिक संस्कार और घर-घर में धार्मिक भावना प्रगटाने का कार्य कर रही हैं 1454
5.3.14.12 श्री महिमाश्रीजी
श्री अजित श्रीजी की शिष्या महिमाश्रीजी निखालसता की प्रतिमूर्ति श्रमणी थी, तप उनके जीवन का प्राण था, वर्धमान तप की 62 ओली, यावज्जीवन नवपद ओली, उपवास से सहस्रकूट तप, 5 तिथि उपवास, 12 तिथि एकासणा आदि आराधना चलती रही, 56 वर्ष का सुदीर्घ संयम पर्याय पालकर स्वर्गवासिनी हुईं। 455
451. वही, पृ. 726-27
452. वही, पृ. 733-34
453. वही, पृ. 729-33
454. वही, पृ. 734
455. वही, पृ. 736-38
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