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5.3.5 आचार्यश्री विजयकलापूर्णसूरिजी के समुदाय की श्रमणियाँ
भारत के पश्चिम कोण में स्थित कच्छ- वागड़ की भूमि में अपने निर्मल चारित्र के प्रभाव से धर्म का बीज वपन करने वाले श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संप्रदाय में 'कच्छ वागड़ समुदाय' के प्रवर्त्तमान गच्छाधिपति श्री विजयकलापूर्णसूरिजी थे, उनका शिष्या - समुदाय भी 'कच्छ - वागड़ श्रमणी समुदाय' के नाम से प्रसिद्धि को प्राप्त है। श्रमणियों में वागड़ को अपनी जन्मभूमि के साथ कर्मभूमि बनाने का सर्वप्रथम श्रेय महत्तरा साध्वी आनंद श्रीजी को है। ये श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संप्रदाय में 'कच्छ - वागड़ की आद्या श्रमणी - रत्ना' के रूप में प्रतिष्ठित हैं, इनके पावन उपदेशों से सैंकड़ों विदुषी नारियाँ संयम पथ पर आरूढ़ हुईं। वर्तमान में भी इस समुदाय में 497 श्रमणियाँ हैं। कुछ श्रमणियों की उपलब्ध परिचय - रेखाएं इस प्रकार हैं
5.3.5.1 महत्तरा आणंद श्रीजी ( संवत् 1938-1993 )
कच्छ वागड़ संघाड़ा के साध्वी समुदाय की प्रथम साध्वी आणंद श्रीजी थीं। संवत् 1917 में पलांसवा (वागड़ा) की भूमि में दोशी मोतीचंद के यहाँ जन्म लेकर अपनी उत्तम ज्ञानसाधना द्वारा अनेक आत्माओं के कल्याण में ये प्रेरक निमित्त बनीं। श्रीमद् विजय कनकसूरिजी महाराज को संसार की असारता का बोध इनके उपदेशों से हुआ। इनकी प्रेरणा से संवत् 1938 मृ शु. 3 पलासवां में उन्होंने दीक्षा ग्रहण की। आपके साध्वी परिवार में वर्तमान में 497 के आसपास साध्वियाँ हैं। 335
5.3.5.2 प्रवर्तिनी चतुरश्रीजी ( संवत् 1967 - स्वर्गस्थ )
रत्नश्रीजी महाराज के समागम से आपने अपनी मातुश्री के साथ संवत् 1967 माघ शुक्ला 10 के दिन मांडवी (कच्छ) में दीक्षा ग्रहण की। अपूर्व वात्सल्य भाव से आपने 250 साध्वियों का संचालन किया। आपकी साध्वियों में कुवलयाश्रीजी, प्रभंजनाश्रीजी, नेमिप्रभाश्रीजी आदि ने वर्धमान तप की 100 ओली पूर्ण की हैं। 336
जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
5.3.5.3 श्री पुष्पचूलाजी ( संवत् 2001 - स्वर्गस्थ )
साध्वी पुष्पचूलाश्रीजी 16 वर्ष की उम्र में परिणय सूत्र में बंधने के बावजूद वैराग्यवासित हृदयी बनकर 29 वर्ष की उम्र में संवत् 2001 मृगशिर शुक्ला 6 को दीक्षित हुईं। दीक्षा से पूर्व ही इन्होंने 3 उपधान तप और वध 'मान तप की 11 ओली पूर्ण की व दीक्षा के 19वें वर्ष में 100 ओली संपूर्ण की, तथा पुनः वर्धमान तप की नींव डालकर संवत् 2046 में 100 ओली पूर्ण की। समग्र भारतवर्ष के साध्वी समुदाय में 200 ओली पूर्ण करने वाली पुण्यात्माओं में इनका द्वितीय स्थान है। अब तीसरी बार 27 ओली पूर्ण कर चुकी हैं। आपकी प्रशिष्या हंसकीर्तिश्रीजी ने भी 500, 1000, 1500, 1700 आयंबिल तप एवं उसमें अट्ठम तप साथ ही मासखमण आदि तप व वर्धमान तप की तीसरी ओली कर रही हैं। 37 इस समुदाय की अवशिष्ट श्रमणियों का सामान्य परिचय तालिका में दिया जा रहा है
335. 'श्रमणी रत्नो', पृ. 365-68
336. वही, पृ. 371
337. वही, पृ. 395
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