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5.1.85 साध्वी हर्षलक्ष्मी ( संवत् 1550 )
संवत् 1550 में रचित खरतरगच्छीय कल्याणतिलक का 'धन्नारास' साध्वी कनकलक्ष्मी की शिष्या हर्षलक्ष्मी के लिये लिपिकृत हुआ । इसकी प्रति अभय जैन लायब्रेरी बीकानेर (नं. 3490) में है। 101
5.1.86 साध्वी गणिनी (संवत् 1573 )
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'श्री जंबूस्वामी चरित्र' (गद्य) संवत् 1573 में खरतरगच्छ के श्री सत्यतिलक मुनि ने प्रह्लादपुर में साध्वी के वाचनार्थ लिखा। यह प्रति घोघा भंडार अहमदाबाद में है। 102
5.1.87 साध्वी सुमतिसिद्धि ( संवत् 1591 )
श्री शुभवर्धन शिष्य रचित' गजसुकुमाल ऋषिरास' साध्वी सुमतिसिद्धि के पठनार्थ प्रतिलिपि किया हुआ अभय जैन ग्रंथालय बीकानेर में ( नं 255 ) है । यही रास पं. रंगकुशलमुनि ने लिखकर साध्वी हर्षलक्ष्मी को पठनार्थ प्रदान किया। प्रति बीकानेर (नं. 2630) में है। 103
5.1.88 साध्वी श्री रूपाई (संवत् 1600 के लगभग )
आप भट्टारक श्री विजयदेवसूरि की आज्ञानुवर्तिनी साध्वी थीं। इस साध्वी का चित्र स्वर्ण की स्याही में लिखी गयी कल्पसूत्र की एक प्रति से प्राप्त हुआ है, जिसमें एक ओर आचार्य विराजमान हैं, दूसरी ओर एक के पीछे एक ऐसी तीन साध्वियों के चित्र हैं। आचार्य के चित्र पर 'भट्टारक श्री विजयदेव सूरीश्वर गुरूभ्यो नमः' तथा साध्वी के चित्र के ऊपर 'साही श्री रूपाई' अंकित है। चित्र अध्याय 1 में दिया गया है।
जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
5.1.89 श्री हेमसिद्धिगणिनी ( संवत् 1602 )
इनके लिये श्री विमलकीर्तिगणी ने 'उपदेशमाला प्रकरण' की प्रतिलिपि संवत् 1602 में लिखकर प्रदान की थी। ये मानसिद्धि की प्रशिष्या और पद्मसिद्धि की शिष्या थी। यह प्रति आचार्य सुशलिमुनि आश्रम नई दिल्ली में है। 104
5.1.90 श्री विमलसिद्धि ( संवत् 1644 )
खरतरगच्छीय कनकसोम रचित " आर्द्रकुमार चौपाई' विमलसिद्धि के पठनार्थ संवत् 1644 में प्रतिलिपि की गई। यह प्रति दानसागर संग्रह बीकानेर (पो. 40 नं. 1048) में है । 105
101. जै. गु. क. भाग 1, पृ. 197
102. जै. गु. क. भाग 1, पृ. 389
103.
जै. गु. क., भाग 1, पृ. 320 104. अप्रकाशित
105. जै. गु. क., भाग 2 पृ. 149
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