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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास ने देहगाम में संवत् 1804 कार्तिक शुक्ला 11 रविवार को करके साध्वी रूपसी पठनार्थ दी। यह प्रति महिमा भक्ति ज्ञान भंडार बीकानेर (पोथी 86) में है। 45 5.1.131 श्री प्रभाजी (संवत् 1812)
खरतरगच्छीय भद्रसेन वाचक की 'चंदन मलयागिरि चौपाई' (रचना संवत् 1709) की प्रतिलिपि संवत् 1812 मार्गशीर्ष कृ. 13 शुक्रवार को पं. भाणविजयजी ने करके महाराजपुर में साध्वी दीपां जी की शिष्या श्री प्रभाजी को दी। यह प्रति महावीर जैन भंडार धोरांजी (गु.) में है। 46 5.1.132 प्रवर्तिनी सुजानविजयाजी (संवत् 1820)
पावापुरी तीर्थ स्थल पर चंदनबाला कोठरी के चरणों पर उल्लेख है कि संवत् 1820 में प्रवर्तिनी श्री सुजानविजयाजी की पादुका प्रतिष्ठित की गई। 47 5.1.133 अज्ञातनामा साध्वीजी (संवत् 1844)
संवत् 1844 में महत्तरा साध्वी सुजानविजया जी की शिष्या दीपविजया उनकी शिष्या पानविजया की प्रेरणा से किसी भक्त श्रावक ने चरण पादुका प्रतिष्ठित कराई, साध्वीजी के नाम का उल्लेख नहीं है। 48 5.1.134 महत्तरा श्री मतिविजयाजी (संवत् 1848)
संवत् 1848 में खरतरगच्छीय भट्टारक श्री जिनरंगसूरि की परम्परा में महत्तरा साध्वी मतिविजया की चरण पादुका उनकी शिष्या रूपविजयाजी ने पावापुरी में प्रतिष्ठित करवाई।।49 5.1.135 श्री राजाजी, श्री चैनाजी ( संवत् 1863)
बीकानेर गंगाशहर रोड पर स्थित आदिनाथ मंदिर में संवत् 1863 की एक चरण पादुका है, जो विक्रमपुर में प्रतिष्ठित हुई, उस पर साध्वी राजा एवं साध्वी चैनां के नामों का उल्लेख हैं अर्थात् उक्त दोनों साध्वियों की ये पादुकाएं हैं।150 5.1.136 श्री सिद्धश्रीजी (संवत् 1888)
संवत् 1888 वै. शुक्ला 3 मेड़ता निवासी सोलंकी गोत्रीय श्री रतनचंदजी के पुत्र पीरचंदजी की भार्या 'सरूपां' पं. चारित्रविनय मुनि के उपदेश से श्री सुमतिवर्द्धन की शिष्या बनीं। उनका नाम 'सिद्धश्री' दिया गया।।51
145. जै. गु. क., भाग 3, पृ. 105 146. जै. गु. क., भाग 3, पृ. 183 147. 'नाहर' जैन लेख संग्रह, भाग 1, लेख संख्या 204 148. वही, भाग 1, ले. सं. 335 149. वही, भाग 1, लेख सं. 206 150. 'नाहटा' बीकानेर जैन लेख संग्रह, ले. सं. 2024, पृ. 281 151. खरतरगच्छ दीक्षा नंदी सूची, पृ. 122
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