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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
लालचंदजी पुंगलिया से विवाह के 3 वर्ष पश्चात् वैधव्य से संसार का बोध प्राप्त कर संवत् 1989 ज्येष्ठ शुक्ला 5 को श्री जतन श्री जी के सान्निध्य में दीक्षा अंगीकार की। इन्होंने अनेक शास्त्र और आध्यात्मिक पुस्तकों का अध्ययन किया। तप, स्वाध्याय और जप में इनकी विशेष रूचि है। मद्रास, बैंगलोर, मुंबई, सूरत, खानदेश, बालाघाट, दूर्ग, रायपुर, इंदौर, राजस्थान, दिल्ली आदि इनके विचरणक्षेत्र रहे हैं | 190
5.1.2.22 महत्तरा श्री मनोहर श्रीजी (संवत् 1991 से 2062 )
आपका जन्म संवत् 1979 माघ सुदि 5 को फलौदी में हुआ। राखेचा गोत्रीय रावतमलजी और जीयोदेवी की आप पुत्री थीं। संवत् 1991 माघ शुक्ला 13 को लोहावट में श्री गुप्तिश्रीजी के पास अत्यंत वैराग्य से दीक्षा ग्रहण की। आपने छत्तीसगढ़ अंचल को खरतरगच्छ का केन्द्र बनाने में बहुत उद्योग किया। आप सरल स्वभावी, मिलनसार और प्रभावशाली व्यक्तित्व वाली विदुषी साध्वी हैं। समुदाय में ज्ञान, अनुभव एवं संयम में वयोवृद्ध होने के कारण आपको महत्तरा पद से विभूषित किया गया। आपश्री की शिष्याओं की संख्या लगभग 31 है, जो अच्छी व्याख्यात्री हैं। नागपुर में संवत् 2062 अक्टूबर 12 को आप स्वर्गवासिनी हुईं। '
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5.1.2.23 श्री बुद्धिश्रीजी (संवत् 1993 )
इन्होंने जिन चैत्यवंदन चतुर्विंशतिका/ त्रैलोक्य प्रकाश जो संवत् 1812 में रचित उपाध्याय क्षमाकल्याण (खरतर) की विविध छंदोबद्ध कृति हैं, उसका वि. सं. 1993 में हिंदी में अनुवाद किया, वह अजमेर के श्राविका संघ की तरफ से वि. सं. 1993 में प्रकाशित हुई। 192
5.1.2.24 प्रवर्तिनी श्री तिलक श्रीजी ( संवत् 1996 से वर्तमान)
आपका जन्म संवत् 1982 को पादरा (गुजरात) में हुआ। श्रीमाल छजलानी गोत्रीय मोतीलालजी एवं लक्ष्मीबहन इनके माता-पिता थे। संवत् 1996 फाल्गुन कृष्णा 2 को अणादरा में विचक्षणश्रीजी के पास दीक्षा ग्रहण की। आप मिलनसार और अच्छी विदुषी साध्वी हैं, प्रवर्तिनी पुण्यश्रीजी मंडल की आप प्रमुखा हैं। 193
5.1.2.25 श्री विनीताश्रीजी ( संवत् 1996 से वर्तमान)
इनका जन्म वि. सं. 1983 को पादरा में छजलानी गोत्रीय मोतीलाल शाह और चम्पाबहन के यहाँ हुआ । संवत् 1996 फाल्गुन कृष्णा 2 को अणादरा में दीक्षा ग्रहण कर श्री विचक्षणश्रीजी की शिष्या बनी। आप अत्यंत सरल हृदया हैं आजीवन अपनी गुरूणी की सेवा में संलग्न रही, आप अभी 5 शिष्याओं के साथ विचरण कर रही हैं। 194
190. वही, पृ. 801
191. खरतरगच्छ का इतिहास, खंड 1 पृ. 424
192. जैन संस्कृत साहित्य का इतिहास, भाग 2, पृ. 575
193. खरतरगच्छ का इतिहास, खंड 1, पृ. 416
194. वही, खंड 1, पृ. 416
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