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श्वेताम्बर परम्परा की श्रमणियाँ
5.1.91 श्री राजलक्ष्मी ( संवत् 1646 )
खरतरगच्छीय जयसोमगणि की 'बारह भावना संधि' (संवत् 1646 ) की प्रतिलिपि साध्वी राजलक्ष्मी ने साध्वी क्षेमलक्ष्मी जयलक्ष्मी के वाचनार्थ लिखी । प्रति अभय ग्रंथालय बीकानेर (नं. 2731 ) में है 1 106
5.1.92 श्री पद्मसिद्धि ( संवत् 1652 ).
खरतरगच्छीय हर्षसार के शिष्य शिवनिधान ने संवत् 1652 श्रावण कृष्णा 4 को शाकम्भरी (सांभर) में रचित 'शाश्वत स्तवन' (गु.) में मानसिद्धि गणिनी की शिष्या पद्मसिद्धि के पठनार्थ का उल्लेख किया है। इस ग्रंथ (प्रशस्ति) की एक हस्तलिखित प्रति महावीर जैन विद्यालय मुंबई (नं. 687) में है । 107
5.1.93 श्री मृगादे 'माणिक्यमाला' (संवत् 1661 )
मृगादे जंगलदेश के बीकानेर नगर के राजा रायसिंह के राज्य में बोथरा गोत्रीय शाह बच्छा की भार्या थीं। एकबार जिनसिंहसूरिजी का वहाँ शुभागमन हुआ, इन्होंने अपने दोनों पुत्र विक्रम और सामल के साथ संवत् 1661 माघ शुक्ला 7 को दीक्षा अंगीकार करली। विक्रम का विनयकल्याण एवं सामल का 'सिद्धसेन' नाम दिया। ये सिद्धसेन आगे जाकर 'आचार्य जिनसागरसूरि' नाम से खरतरगच्छ के प्रभावशाली आचार्य हुए। निर्वाणरास ( कवि सुमतिवल्लभकृत) में 'मृगादे' का नाम 'माणिक्यमाला' दिया है। 108
5.1.94 प्रवर्तिनी लावण्यसिद्धि (स्वर्ग. संवत् 1662 )
आप वीकराज की पत्नी गुजरदे की कुक्षि से उत्पन्न हुई थी और प्रवर्तिनी रत्नसिद्धि की पट्टधर शिष्या थीं। साध्वी हेमसिद्धि ने 'लावण्यसिद्धि पहुतणी गीतम्' में लिखा है कि आप जिनचन्द्रसूरिजी के आदेश से बीकानेर आईं और वहीं अनशन आराधना कर संवत् 1662 में स्वर्ग सिधारी । वहां आपकी स्मृति में एक स्तूप बनाया गया। 109
5.1.95 प्रवर्तिनी सोमसिद्धि ( संवत् 1662 के आसपास )
आप नाहर गोत्रीय नरपाल की पत्नी सिंघादे की कुक्षि से पैदा हुई, बचपन का नाम 'संगारी' था। जेठाशाह के पुत्र राजसी के साथ आपका विवाह हुआ 18 वर्ष की अवस्था में आपने लावण्यसिद्धि के पास दीक्षा अंगीकार की, उन्हीं से विद्याभ्यास किया और उनकी पट्टधर बनीं। इन्होंने शत्रुंजय आदि तीर्थों की यात्रा की थी, तप-जप साधना करके अंत में श्रावण कृष्ण 14 गुरूवार को संथारे सहित स्वर्गवासिनी हुईं। आपकी शिष्या हेमसिद्धि ने 'मल्हार राग' में 'सोमसिद्धि निर्वाण गीतम्' 18 पद में लिखा, जिसमें गुरणी के प्रति अपार स्नेह प्रदर्शित हुआ है।
106. जै. गु. क. भाग 2 पृ. 236
107. जै. गु. क. भाग 2, पृ. 284
108. माणिकमाला मावड़ी विनयकल्याण विशेष । सिद्धसेन इम त्रिहुं जणा, नाम दीक्षा ना देखि ।।
गाथा 15-अगरचंद नाहटा, ऐति. जैन काव्य संग्रह, पृ.
191
109. 'नाहटा', ऐति. जैन काव्य संग्रह, पृ. 210-211
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