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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास अभिलेख में 'आर्यिका' का उपदेश अंकित है।।10 इन्दुआ, लवणश्री, नवासी, मदन, धर्मश्री आदि आर्यिकाओं के सक्रिय धार्मिक सहयोग और जीवन-गाथाएँ भी अभिलिखित हैं। संवत् 1208 के शिलालेख से ज्ञात होता है कि वहाँ आचार्य जयकीर्ति के शिष्यों में भावनन्दि मुनि तथा कई आर्यिकाएँ थीं, इसी प्रकार संख्या 222 की मूर्ति मुनि, आर्यिका, श्रावक एवं श्राविका-चतुर्विध संघ के लिये बनी थी।''
उत्तर भारत के वैराटनगर (दिल्ली के निकट) में अकबर के शासनकाल के समय कवि राजमल्ल जिन्होंने 'लाटी संहिता' की रचना की; ने 'जम्बूस्वामी चरित' में लिखा है कि भटानिया कोल के निवासी साह टोडर जब तीर्थयात्रा करते हुए मथुरा पंहुचे तो उन्होंने वहां 514 दिगम्बर मुनियों के समाधि सूचक प्राचीन स्तूपों को जीर्णशीर्ण दशा में देखकर उनका उद्धार करवाया, तथा शुभ तिथि व वार को चतुर्विध संघ-मुनि, आर्यिका, श्रावक, श्राविका को एकत्र कर प्रतिष्ठा करवाई थी।12 इस उल्लेख से प्रतीत होता है कि कुछ दिगम्बर मुनि व आर्यिकाएँ अकबर काल में विचरण करती थीं, लेकिन उसके पश्चात् धीरे-धीरे दिगम्बर आर्यिकाएँ विलुप्त सी हो गयीं। यहां संवत् 1045 से 1828 तक उपलब्ध दिगम्बर परम्परा की आर्यिकाओं का विवरण दिया गया है।
4.8.1 आर्या ललितश्री (संवत् 1045)
द्वारहट जि. अलमोड़ा (उ. प्र.) में संवत् 1045 सन् 988, का संस्कृत भाषा एवं नागरी लिपि में उल्लिखित यह शिलालेख चरणपादुका के पास है। इसमें उक्त वर्ष में अर्जिका देवश्री की शिष्या अर्जिका ललित श्री का नाम
अंकित है। लेख से यह स्पष्ट नहीं होता है कि यह चरण पादुका ललितश्री की है या उनकी प्रेरणा से प्रतिष्ठापित किसी आचार्य या मुनि की। 4.8.2 आर्यिका इन्दुआ (संवत् 1095)
देवगढ़ जिला झांसी (उ. प्र.) के किले में तीर्थंकर की एक खड़ी मूर्ति पर प्राकृत-संस्कृत भाषा में सं. 1095 की दो पंक्ति का शिलालेख है उस पर 'आर्यिका इन्दुआ' नाम अंकित है। संभव है, उक्त मूर्ति के निर्माण में आर्यिका इन्दुआ की प्रेरणा रही हो। 4.8.3 आर्यिका लवणश्री (संवत् 1135)
देवगढ़ जिला झांसी (उ. प्र.) के मंदिर संख्या 20 में एक जैनमूर्ति की स्थापना हुई, इसमें वि. सं. 1136 में जसोधर के पुत्र (नाम अस्पष्ट) का उल्लेख है। यहीं के एक अन्य लेख में सं. 1135 में आर्यिका लवणश्री का नाम
110. डॉ. भागचन्द्र 'भागेन्दु' देवगढ़ की जैन कला एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ. 76 111. दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि, पृ. 120 112. दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि, पृ. 144 113. जैन शिलालेख संग्रह, भाग 5, पृ. 22 114. विश्वम्भरदास गार्गीय, देवगढ़ के जैन मंदिर, संख्या 11, प्रकाशन-बलवन्त प्रेस, श्री देवगढ़ तीर्थोद्धारक फंड, झांसी, वी. सं.
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