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जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास सम्मेदशिखर पर आपकी दीक्षा हुई, अंतिम समय कैंसर रोग से पीड़ित रहने पर भी स्वाध्याय, नित्य नियम नहीं छोड़ा 1203
4.9.51 आर्यिका अनन्तमतीजी (सं. 2011 )
तपस्विनी आर्यिका श्री अनन्तमती माताजी का जन्म 13 मई 1935 को गढ़ी (उ. प्र. ) ग्राम में हुआ, आपके पिता लाला मिट्ठनलाल जी व माता पार्वतीदेवी थी। आपने 8 वर्ष की उम्र में ही त्याग की दिशा पकड़ ली 13 वर्ष की उम्र में तो रात्रि को पानी पीने का भी आजीवन त्याग कर दिया, आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर लिया, क्षुल्लिका और आर्यिका न होने पर भी आपकी साधना उनसे किसी प्रकार कम नहीं थी, आप घंटों सामायिक करतीं, लोग देवी मानकर दर्शन हेतु उमड़े चले आने लगे, आशीर्वाद पाकर फूले न समाते, आप विचार करतीं - बिना दीक्षा लिये जब यह हाल है तो दीक्षा लेने पर क्या होगा? 19 वर्ष की आयु में आचार्य देशभूषण जी से कांधला में आर्यिका दीक्षा ग्रहण कर आप इलायची से 'आर्यिका अनन्तमती' बन गईं।
आपकी केशलुंचन की क्रिया को देखकर लोग विरक्ति की भावना का अनुभव करते थे। आपके आहार संबंधी कठोर नियम और उनमें भी अनेकों बार अन्तराय आ जाता, कभी-कभी 10-15 दिन तक भी आहार नहीं हुआ, तब भी आपके मुख की सौम्यता और सुषमा नहीं गई। आप एक ऐसी आर्यिका हैं जो वर्ष में 3-4 मास ही आहार लेती हैं। रोग की पीड़ा, अन्तराय का क्षोभ और कठोर क्लान्ति का आभास भी आपके मुख पर प्रकट नहीं होता, प्रायः मौन रहकर स्वाध्याय एवं साधना में लीन रहती हैं। कंकाल मात्र शरीर में कितनी सशक्त कितनी तेजस्वी आत्मा निवास करती है, इसका आदर्श उदाहरण ये श्रमणीजी हैं। 204
4.9.52 आर्यिका स्याद्वादमतीजी (संवत् 2036 के बाद )
आपका जन्म 14 मई सन् 1953 को इन्दौर के सुप्रतिष्ठित परिवार में श्रीमान धन्नालाल जी पाटनी के यहां हुआ। आपने बी. ए. तक अध्ययन किया, 16 वर्ष की उम्र में ब्रह्मचर्यव्रत अंगीकार कर एक आदर्श स्थापित किया, श्रावण शुक्ला 12 संवत् 2036 में सोनागिरी जी पर आचार्य विमलसागर जी से आपने क्षुल्लिका दीक्षा ग्रहण की, तदनन्तर गोम्मटेश्वर महामस्तकाभिषेक में आर्यिका दीक्षा लेकर स्याद्वादमती नाम को सार्थक किया। आप अध्ययन, मनन, चिंतन के साथ स्व- पर कल्याण करती हुई श्रेष्ठ साध्वी जीवन व्यतीत कर रही हैं 1205
4.9.53 आर्यिका नंगमतीजी ( संवत् 2036 )
आप इन्दौर के माणिकचंद जी कासलीवाल की कुलदीपिका हैं। आपने 18 वर्ष की उम्र में आजीवन ब्रह्मचर्यव्रत धारण कर लिया। सप्तम प्रतिमा की आराधना के पश्चात् श्रावण शुक्ला पूर्णमासी संवत् 2036 में सोनागिरी पर श्री विमलसागर जी महाराज से आर्यिका दीक्षा ग्रहण की। आप अध्ययनशीला, सरल स्वभावी एवं मृदुभाषी साध्वी हैं। 206
203. दि. जै. सा., पृ. 330
204. दि. जै. सा., पृ. 332
205. दि. जै. सा., पृ. 400
206. दि. जै. सा., पृ. 400
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