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दिगम्बर परम्परा की श्रमणियाँ
4.9.54 आर्यिका सुवैभवमतीजी (संवत् 2038 )
आप गुजरात के पंचमहल दाहोद ग्राम के श्री पन्नालाल जी गांधी की सुपुत्री है। आपने 12वीं कक्षा तक अध्ययन किया। मूल गुजराती होती हुई भी हिन्दी, कन्नड़, संस्कृत की अच्छी ज्ञाता हैं। मुनि दयासागर जी से त्रिमूर्ति पोदनपुर में 1 जनवरी 1982 को आर्यिका के रूप में दीक्षित हुई। आप सरल, शांतिप्रिय व अध्ययनशीला श्रमणी हैं। 207
4.9.55 आर्यिका सुप्रकाशमतीजी ( संवत् 2038 )
आपका जन्म कुण्डा (उदयपुर) में हुआ, आपने 11वीं तक लौकिक शिक्षा प्राप्त की, 15 वर्ष की उम्र में ही आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण कर नवयुवतियों के समक्ष आदर्श प्रस्तुत किया । बम्बई पोदनपुर त्रिमूर्ति में आपने मुनि दयासागर जी से 17 जनवरी 1982 में आर्यिका दीक्षा धारण की। आप सरल व तपस्विनी साध्वी हैं। 208
4.9.56 आर्यिका बाहुबली माताजी ( संवत् 2039 )
आपका जन्म कर्नाटक प्रान्त के रामनेवाड़ी ग्राम में सन् 1960 में हुआ, आपके पिता श्री अन्नासाहेब व माता सोनाबाई धर्मनिष्ठ सज्जन प्रवृत्ति के व्यक्ति थे । आपने 22 वर्ष की उम्र में संवत् 2039 में गणेशबाड़ी स्थान पर आचार्य सुबलसागर जी महाराज से आर्यिका दीक्षा अंगीकार की। आपकी ज्येष्ठा भगिनी श्री भरतमती जी माताजी हैं। आप बहुभाषाविद् एवं आगमज्ञा हैं। ज्योतिष, वास्तु, ध्यान, मुद्रा आदि में भी आपकी रूचि है। आपने जहां भी वर्षावास किये वहां ध्यान शिविर, मुद्रा शिविर एवं ज्ञान शिविर के आयोजन कर लोगों में धर्म की अभिरूचि जागृत की है। आपकी मौलिक कृतियाँ हैं- सम्यक्त्व - सुमन, जीवन जीने की कला ध्यान, मंत्र जाप आदि। आप मृदु, मधुरभाषिणी एवं सफल प्रवचनकर्त्री हैं। 209
4.9.57 आर्यिका अजितमतीजी ( संवत् 2048 )
आपका जन्म सन् 1900 के लगभग कोल्हापुर (महाराष्ट्र) के निकट वलिवड गांव में नाना साहेब चौगुले व कृष्णाबाई के यहां हुआ। जन्म नाम मरूदेवी था, उस समय की रूढ़ि परम्परा से मात्र 1 वर्ष की अवस्था में विवाह और 12 वर्ष की आयु में वैधव्य दशा आ गई। कंदमूल, रात्रि भोजन त्याग आदि के साथ दीक्षा लेने की प्रबलेच्छा जागृत हुई, किंतु दिगम्बर साधु साध्वियों के अभाव से वह इच्छापूर्ण नहीं हुई। पश्चात् 25 - 26 वर्ष की वय में शांतिसागर जी महाराज से शिखर जी पर क्षुल्लिका दीक्षा ग्रहण की, वह दिन था फाल्गुन शुक्ला नवमी संवत् 1985 आप 63 वर्ष पर्यंत ज्ञान व चारित्र की आराधना करती रहीं। 7 जनवरी 1991 को आचार्य बाहुबलिजी महाराज से आर्यिका दीक्षा ग्रहण की, अनेक ग्रंथों का गहन अध्ययन, दीर्घ एवं कठोर तपाराधना कर अंत में संलेखना सहित समाधिमरण को प्राप्त हुईं। आप अपने जीवन में दशलक्षण व्रत 10 वर्ष, षोडशकारण व्रत 16 वर्ष, श्रुत स्कंधव्रत 12
207. दि. जै. सा., पृ. 282
208. दि. जै. सा., पृ. 281
209. प्रत्यक्षीकरण से प्राप्त परिचय के आधार पर
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