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4.9.15. आर्यिका श्री शीलमतीजी (संवत् 2015 )
आपका जन्म शिरसापुर (महाराष्ट्र) में हुआ, आपने बाल ब्रह्मचारिणी के रूप में रहकर अनेक संस्थाओं का संचालन किया। संवत् 2015 श्रावण शुक्ला 6 को फिरोजाबाद (उ. प्र.) में आचार्य महावीरकीर्तिजी से दीक्षा धारण कर आर्यिका बनीं। आपकी प्रेरणा से अनेक मन्दिरों में जिन प्रतिमाएं प्रतिष्ठित हुईं, धर्मकार्य में आप अग्रणी रहकर कार्य करती हैं। 167
4.9.16. आर्यिका श्री श्रेयांसमतीजी (संवत् 2015 )
आपका जन्म राजसुन्नारगुडी में श्री वर्द्धमान मुदालिया जी के यहाँ हुआ, आपका विवाहित जीवन स्वल्प ही रहा, 38 वर्ष की उम्र में दो पुत्र रत्न की प्राप्ति के पश्चात् आप विधवा हो गईं। संवत् 2015 में आपने आचार्य महावीरकीर्तिजी से नागौर में आर्यिका दीक्षा ले ली। आप नागौर, अजमेर, पावागढ़, बड़वानी, गजपन्था आदि स्थानों पर वर्षावास करती हुई धर्म की प्रभावना कर रही हैं। 168
4.9.17 आर्यिका श्री राजमतिजी
आप मध्यप्रदेश के अम्बा (मुरैना) ग्राम की कुलदीपिका हैं आचार्य सुमतिसागर जी से दीक्षा अंगीकार कर धर्म प्रभावना के कई कार्य किये, आप कोटा में जैन औषधालय व जैन पाठशाला, सागर (म. प्र. ) में वर्णी जैन भुवन, वाकल (जबलपुर) में पाठशाला, पांडिचेरी में मंदिर तथा अन्यत्र भी मंदिरों की प्रेरिका रही हैं। 169
जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
4.9.18 आर्यिका श्री सुपार्श्वमतीजी
बांसवाड़ा (राजस्थान) निवासी श्री अजबलाल जी आपके पिता थे, संसार अवस्था में आप तीन पुत्र और पुत्री की माता थीं, किंतु विरक्ति के बीज जब मनोभूमि पर अंकुरित हुए तो आपने अपने पति 'अर्हत्मार्ग स्वीकार करने की प्रेरणा दी, आपकी सतत प्रेरणा फलीभूत हुई, दोनों दम्पत्ति साथ ही व्रती बने, आपने शिखरजी पर कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा के दिन श्री विमलसागर जी से आर्यिका दीक्षा ग्रहण की। चारित्र का दृढ़ता से पालन करते हुए डुंगरपुर में आपकी समाधि हो गई । 170
4.9.19 आर्यिका श्री जिनमतीजी (2016)
म्हसवड़ (महाराष्ट्र) ग्राम में जन्मी प्रभावती बाल्यवय में ही माता-पिता की स्नेहछाया से वन्चित हो गई, ज्ञानमती माताजी ने षोडशी अवस्था में इस बालिका को अपनी शीतल वात्सल्यमयी हृदय धरा पर परिपोषित किया, वीरसागरजी महाराज से संवत् 2012 में क्षुल्लिका दीक्षा एवं तदनन्तर आचार्य शिवसागरजी से संवत् 2016 को सीकर में आर्यिका दीक्षा अंगीकार की।
167. दि. जै. सा., पृ. 363
168. दि. जै. सा., पृ. 362
169. दि. जै. सा., पृ. 498
170. दि. जै. सा., पृ. 363
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