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2.6.45 विमला
राजपुर नगर के सेठ सागरदत्त और सेठानी कमला की पुत्री । निमित्तज्ञानी के कथनानुसार इसका विवाह जीवन्धर कुमार के साथ हुआ था । जीवन्धर के दीक्षा ले लेने पर इसने भी चन्दना - आर्यिका से संयम धारण कर लिया था । 213 2.6.46 वेदवती
मृणालकुण्ड नगर के श्रीभूति पुरोहित और उसकी स्त्री सरस्वती की पुत्री। इसी नगर के राजकुमार शम्भू ने इसके पिता को मारकर बलपूर्वक इसके साथ कामसेवन किया था। शम्भू की इस कुचेष्टा के कारण आगामी पर्याय में शम्भू का वध करने का निदान किया, आयु के अन्त में आर्यिका हरिकान्ता से दीक्षा लेकर इसने कठिन तप किया तथा मरकर ब्रह्म स्वर्ग में गई। वहाँ से च्यवकर यह राजा जनक की पुत्री सीता हुई। पूर्वभव के निदान के अनुसार रावण (शम्भू का जीव ) के क्षय का कारण बनीं। 214
2.6.47 शीलावती
इसने " द्वादशीव्रत " किया, बाद में दीक्षा ली। 215
2.6.48 श्रीकान्ता
जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र सम्बन्धी पुष्कलावती देश की वीतशोका नगरी के राजा अशोक और रानी श्रीमती की पुत्री। इसने जिनदत्ता आर्यिका से दीक्षा ली, रत्नावली- तप करते हुए देह त्याग करके माहेन्द्र स्वर्ग के इन्द्र की देवी हुई 1216
जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
2.6.49 श्रीकान्ता
मथुरा नगरी के सेठ भानु की पुत्रवधु और शूर की पत्नी । अंत में दीक्षित हो गई थी। 217
2.6.50 श्रीधरा
विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी में धरणीतिलक नगर के राजा अतिबल और रानी सुलक्षणा की पुत्री । यह अलका नगरी के राजा सुदर्शन के साथ विवाही गयी थी। इसने गुणवती आर्यिका से दीक्षा लेकर तप किया। तपश्चरण अवस्था में पूर्वभव के वैरी सत्यघोष के जीव अजगर ने इसे निगल लिया। मरकर यह कापिष्ठ स्वर्ग के रूचक विमान में उत्पन्न हुई 1 218
213. मपु. 75/584-87; 679-84 दृ. जैपु को. पृ. 377
214. पपु. 106/135-78, 208, 225-31 दृ. जै पु. को. पृ. 387
215. जैन व्रत कथा संग्रह, पृ. 110
216. मपु. 71/393-96; हपु. 60/68-70 दृ. जै पु को. पृ. 408
217. हपु. 33/96-99, 127
218. मपु. 59/228-38; हपु. 27/77-79
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