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दिगम्बर परम्परा की श्रमणियाँ 4.6.13 कनकवीर कुरत्तियार (संवत् 900 के आसपास)
यापनीय संघ के गुणकीर्ति भट्टारक की शिष्या कनकवीर कुरत्तियार उच्चकोटि की शास्त्रज्ञ एवं कवियित्री थी। तमिलनाडु के जैन शिलालेखों मे उल्लेख है कि 500 साध्वियों की ये अधिनायिका आचार्या थीं, इनके साथ ही किसी अन्य जैन संघ की चारसौ साध्वियाँ जो वेडाल में ही विद्यमान थीं, आपस में मनोमालिन्य बढ़ गया, उस समय उसके भक्तों ने उन्हें आश्वस्त करते हुए साध्वी संघ की रक्षा एवं प्रतिदिन की आवश्यकता की पूर्ति करने का वचन दिया।" 400 साध्वियों के जिस समूह के साथ कुरत्तियार कनकवीरा का संघर्ष हुआ, वे संभवतः दिगम्बर परम्परा के द्राविड़ संघ की साध्वियाँ रही होंगी, इस कारण विद्वानों ने यह अनुमान लगाया है कि कनकवीर कुरतियार का संघ कर्णाटक प्रदेश से तमिलनाडु में धर्म के प्रचार प्रसार हेतु आया होगा, उसमें उनकी आशातीत सफलता एवं बढ़ते प्रभाव को देखकर द्राविड़ संघ के साध्वी समूह में सहज ईर्ष्या भाव जागृत हुआ होगा। बहुत सम्भव है, उन्होनें अपने अनुयायियों
रने व आहार पानी देने का निषेध किया हो, इस संकट की घडी में यापनीय संघ एवं इन साध्वियों के प्रति श्रद्धा रखने वाले अनुयायी वर्ग ने इनके भरण-पोषण का भार अपने ऊपर लेते हुए उन्हें आश्वस्त किया हो। तमिलनाडु के लिये उस समय यह धार्मिक असहिष्णुता की घटना बड़ी महत्वपूर्ण घटना रही होगी, अतः उसे शिलालेख में उदृकित किया गया प्रतीत होता है। तमिलनाडु के अकेले बेडाल क्षेत्र में नौसौ साध्वियों के समूह की इस घटना से यह भी सहज अनुमान लगता है कि उस समय दक्षिण प्रान्त में अन्य स्थानों की मिलाकर हजारों श्रमणियाँ उन प्रदेशों में विचरण करती होंगी, इतनी श्रमणियों को धर्ममार्ग पर अग्रसर होने की प्रबल प्रेरणा देने वाली ये कुरत्तियार, भट्टारिकाएं निश्चय ही अत्यन्त लोकप्रिय एवं शक्तिशाली रही होगी तभी इतने विशाल साध्वी-समुदाय की देखरेख करती थीं।
4.6.14 संलेखना ग्रहण करने वाली छः आर्यिकाएं (10वीं सदी)
"सुन्दी'(धारवाड़) के जैन मंदिर में 20वीं शती के एक शिलालेख पर अंकित है कि पश्चिमीय गंगवंशीय राजकुमार बुटुग की पत्नी दिवलम्बा ने छः आर्यिकाओं को समाधिमरण कराया था।" 4.6.15 मारब्बे कन्ति (10वीं सदी)
आप देवेन्द्र पंडित भट्टार की शिष्या थीं। मण्णे (मैसूर) के शिलालेख पर आपके समाधिमरण का तथा कलिगब्बेकन्ति द्वारा निसिधि की स्थापना करने का उल्लेख है। शिलालेख पर अंकित लिपि 10वीं सदी की एवं भाषा कन्नड़ है। 4.6.16 देवियब्बे कन्ति (10वीं सदी)
__ आप प्रभाचन्द्र भट्टार की शिष्या थीं, इन्होंने अंकनाथपुर (मैसूर) मे समाधिमरण किया, उसका स्मारक निर्मित हुआ है। यह लेख अंकनाथेश्वर मंदिर की छत में स्थित है। इसकी भी भाषा कन्नड़ एवं लिपि 10वीं सदी की है।" 37. साउथ इण्डियन इंस्क्रिप्शन्स, वोल्यूम 3 संख्या 92 38. जै. मौ. इ. भाग 3, पृ. 198 39. 'आ. देशभूषण', महावीर और उनका तत्वदर्शन, अ. 4, पृ. 435 40. अभिलेख 102, जै. शि. सं. भाग 4 पृ. 69 41. अभिलेख 105,जै. शि. सं. भाग 4
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