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प्रागैतिहासिक काल से अर्हत् पार्श्व के काल तक निर्ग्रन्थ- परम्परा की श्रमणियाँ
चातुर्यता से उसकी स्त्री से रत्न मंगवा लिये। इस प्रकार भद्रमित्र को न्याय दिलाने और अपराधी को दंडित कराने में इसका अपूर्व योगदान रहा। राजा के मरने के पश्चात् इसने हिरण्यमति आर्यिका से संयम धारण किया । पुत्र सिंहचन्द्र भी दीक्षित हुआ, यह देखकर यह हर्षित हुई थी। अंत में पुत्र स्नेह से निदानपूर्वक मरकर महाशुक्र स्वर्ग के भास्कर विमान में देव हुई | 206
2.5.39 वसन्तसुन्दरी
वसुन्धरपुर के राजा विंध्यसेन और रानी नर्मदा की पुत्री । युधिष्ठिर के लाक्षागृह की आग में जलकर मर जाने के समाचार से इसका विवाह युधिष्ठिर से नहीं हो सका तब यह संसार से विरक्त हुई और इसने दीक्षा ले ली थी। 207 2.5.40 विजयावती
पूर्वभव में इसने " मेघमालाव्रत" का आराधन किया। और अब जिनेश्वरी दीक्षा ले 16वें स्वर्ग मे देव बनी, आगे मोक्ष प्राप्त करेगी | 208
2.5.41 विद्यु
यह पूर्वभव में सर्वभूषण की आठसौ स्त्रियों में किरणमण्डला नामकी प्रधान स्त्री थी। इसने अपने मामा के पुत्र हेमशिख का सोते समय बार-बार नामोच्चारण किया था, इस घटना से इसका पति मुनि बन गया और यह साध्वी हो गई थी। आयु के अंत में किसी कलुषित भावना से मरकर यह राक्षसी हुई 1 209
2.6.42 विनयवती
गोवर्धन नगर के श्रावक जिनदत्त की स्त्री । यह आर्यिका होकर तथा तप करते हुए मरकर स्वर्ग में देव हुई थी । 210 2.6.43 विमलमती
यह गणिनी आर्यिका थी। राजा कनकशांति की दो रानियाँ इनसे दीक्षित हुई थीं। 21
2.6.44 विमल श्री
भरतक्षेत्र में जयन्त नगर के राजा श्रीधर और रानी श्रीमती की पुत्री । भद्रिलपुर के राजा मेघनाद की यह रानी थी। पति के मर जाने पर इसने पद्मावती आर्यिका के समीप दीक्षा लेकर आचाम्ल वर्धमान तप किया था। अन्त में मरकर यह सहस्रार स्वर्ग के इन्द्र की प्रधान देवी बनी | 212
206. मपु. 59/146-77, 192-256; हपु. 27/20-21, 47-58 दृ. 207. हपु. 45/70-72 दृ. जै. पु. को. पृ. 352 208. जैन व्रत कथा संग्रह, पृ. 94 209. पपु. 104/99-117 दृ. जै. पु. को. 370 210. पपु. 20/137-43 दृ. जै. पु. को. पृ. 372
211. मपु. 63/ 124 दृ. जै.. पु. को. पृ. 376
212. मपु. 71/452-57; हपु. 60/117-20 दृ. जै. पु. को. पृ. 376
जै. पु. ant. y. 328
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