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2.6.33 मद्री / माद्री
राजा अन्धकवृष्णि और उसकी रानी सुभद्रा की द्वितीय पुत्री, कुंती की छोटी बहिन । समुद्रविजय आदि इसके भाई थे। यह पाण्डु की द्वितीय रानी थी। नकुल और सहदेव इसके पुत्र थे। पति के दीक्षित हो जाने पर इसने भी संसार से विरक्त होकर पुत्रों को कुंती के संरक्षण में छोड़ दिया था और संयम धारण करके गंगा तट पर घोर तप किया था, अन्त में मरकर सौधर्म स्वर्ग में उत्पन्न हुई | 201
2.6.34 मित्र श्री
धनश्री की छोटी बहिन | अपनी छोटी बहिन नागश्री द्वारा धर्मरूचि मुनि को विषमिश्रित आहार दिये जाने से यह और इसकी बड़ी बहिन धनश्री तथा सोमदत्त आदि तीनों भाई दीक्षित हो गये थे। मरकर ये पाँचों जीव अच्युत स्वर्ग में सामानिक देव हुए। वहाँ से च्यवकर पाण्डुपुत्र सहदेव हुई थी। 202
2.6.35 यमुनादत्ता
मथुरा के बारह करोड़ मुद्राओं के अधिपति सेठ भानु की स्त्री। इसके सुभानु भानुकीर्ति आदि सात पुत्र थे । अन्त में इसने और इसकी सातों पुत्रवधुओं ने जिनदत्ता आर्यिका के समीप तथा इसके पुत्रों ने व पति भानु सेठ ने वरधर्म मुनि से दीक्षा ले ली थी। 203
2.6.36 यशस्वती
राजा चेटक की पुत्री ज्येष्ठा की दीक्षा इनके द्वारा होने का उल्लेख पुराणों में है। 204
2.6.37 यशोधरा
अलका नगरी के राजा सुदर्शन और रानी श्रीधरा की पुत्री । यह विजयार्ध की उत्तर श्रेणी में प्रभाकरपुर के राजा सूर्यावर्त के साथ विवाही गयी थी। इसने अपनी माता के साथ गुणवती आर्यिका से दीक्षा ले ली थी । अन्त में पति और पुत्र ( रश्मिवेग) दोनों दीक्षित हो गये थे | 205
जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
2.5.38 रामदत्ता
मेरू गणधर के नौवें पूर्वभव का जीव । पोदनपुर के राजा पूर्णचन्द्र और रानी हिरण्यवती की पुत्री, सिंहपुर के राजा सिंहसेन की रानी थी। इसके मंत्री सत्यघोष द्वारा भद्रमित्र की धरोहर के रूप में रखे गये रत्नों को उसे पुन: लौटाने मुकर जाने पर इसने मंत्री के साथ जुआ खेला और उसमें उसका यज्ञोपवीत व नामांकित अंगूठी मंत्री के घर भेजकर
से
201. मपु. 70/94-97, 114-116 दृ. जै. पु. को. पृ. 272, 294 202. मपु. 72/227-37, 261, दृ. जै. पु. को. पृ. 298 203. मपु. 71/2016, 243 44, हपु. 33/96-100 दृ. जै. 204. मपु. 75/31-33 दृ. जै. पु. को. पृ. 313 205. मपु. 59/230; हपु. 27/79-83 दृ. जै. पु. को. पृ. 314
पु. को.
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पृ. 312
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