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महावीर और महावीरोत्तरकालीन जैन श्रमणियाँ
पर ही कहीं छोड़ दिया। राजा श्रेणिक भगवान महावीर के दर्शनार्थ उधर से निकले तो दुर्गन्धा को देख भगवान से उसका पूर्वभव पूछा। प्रभु ने कहा-यह पूर्वभव में शालिग्राम के धनमित्र श्रेष्ठी की कन्या 'धनश्री' थी। अपने विवाहोत्सव के समय एक निर्ग्रन्थ मुनि को देख उनसे घृणा की. अतः यहाँ उसे दुर्गन्धयुक्त शरीर मिला। यौवनवय आने पर इसके पापकर्म का क्षय हो जायेगा. तब यह तुम्हारी ही रानी बनेगी। कालान्तर में वैसा ही हुआ, एक निःसंतान ग्वालन ने इसे पुत्रीवत् पाला। इसके सौन्दर्य को देखकर राजा श्रेणिक मोहित हो गये और उसके साथ विवाह कर लिया। कुछ वर्षों पश्चात् जब उसे अपने पूर्वभवों का वृत्तान्त ज्ञात हुआ तो संसार की नश्वरता का बोध कर वह भगवान के पास दीक्षित हो गई। दुर्गन्धा ने तप-संयम की सुगंध से अपनी आत्मा को सुवासित कर लिया।
3.2.16 जयश्री, मनोरमा, देवदत्ता, धनश्री, श्रीमती, कुसुमश्री और सोमश्री
राजगृह के श्रेष्ठी धनदत्त के पुत्र कृतपुण्य की ये आठ भाएं थीं। जयश्री राजगृह के श्रेष्ठी सागरदत्त की पुत्री थी, मनोरमा राजा श्रेणिक की पुत्री थी, देवदत्ता, सुलोचना गणिका की पुत्री, शेष चारों बसन्तपुर की सेठानी चम्पा की युवती विधवाएं थीं, ये सातों कृतपुण्य के सुख-दुःख में भागीदार बनी थीं। भगवान महावीर के द्वारा अपना पूर्वभव श्रवण कर सभी को जातिस्मृतिज्ञान हुआ, इन सबने राजगृही के गुणशीलक उद्यान में संयम अंगीकार किया। जयश्री, मनोरमा आदि सातों साध्वियाँ चन्दनबाला की आज्ञानुवर्तिनी बनकर कठोर महाव्रतों का पालन करती हुई सद्गति को प्राप्त हुईं। 3.2.17 श्री विजयादेवी
दक्षिण भारत के वर्तमान कर्नाटक (मैसूर) राज्य में हेमांगद नामक देश की राजधानी राजपुरी में सत्यन्धर राजा की ये अतिप्रिय लावण्यवती महारानी थी। सत्यन्धर सज्जन प्रकृति के पुरूष थे साथ ही वैज्ञानिक यन्त्रों को बनाने में अत्यधिक पटु थे, किन्तु राज-काज में कोरे होने से मंत्री काष्टांगार के षड्यन्त्र का शिकार हुए, आसन्न संकट देख गर्भवती विजयारानी को स्वनिर्मित मयूरयन्त्र में बैठाकर आकाशमार्ग से पहले ही उन्होंने बाहर भेज दिया। दूर एक श्मशान में यन्त्र उतरा वहीं विजया ने जीवन्धर को जन्म दिया। विजया ने अनेक संकट झेलते हुए पुत्र के लालन-पालन, सुरक्षा एवं उचित शिक्षा-दीक्षा की व्यवस्था की। उसके पश्चात् चन्दना आर्या के पास संयम ग्रहण किया।
3.2.18 आर्या सुव्रता
प्रभु महावीर के प्रथम पट्टधर आर्या सुधर्मा के आचार्यकाल में महासती सुव्रता का उल्लेख परिशिष्ट पर्व में आचार्य हेमचन्द्र ने किया है, वहाँ उल्लेख है कि जम्बूकुमार की माता, पत्नियों एवं उनकी माताओं को आचार्य सुधर्मा स्वामी ने श्रमणी दीक्षा प्रदान कर साध्वी सुव्रताजी की आज्ञानुवर्तिनी बनाया। साध्वी सुव्रता प्रवर्तिनी चन्दनबाला की आज्ञानुवर्तिनी स्थविरा साध्वी थी या आचार्य सुधर्मा के श्रमणी संघ की प्रवर्तिनी? यदि प्रवर्तिनी थीं तो किस समय 33. (क) आव नि. हरि. वृ., भा. 1 पृ. 217 (ख) निशीथसूत्र भाष्य, भाग 1 पृ. 16 गा. 25 34. (क) अभयकुमार चरितं महाकाव्य सर्ग 9, उपाध्याय चन्द्रतिलक रचित (ख) कयवन्ना शाह नो रास, जयतसी कविकृत,
कथा-उपलब्धि सूत्रः जैन कथाएं, भाग 46 35. समीपे चन्दनार्या वा जगह: संयम परं - उत्तरपुराण, पृ. 527
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