________________
जैन श्रमणियों का बृहद इतिहास
से किस समय तक प्रवर्तिनी रहीं, इस संबंध में कहीं कोई उल्लेख दृष्टिगोचर नहीं होता। तथापि जम्बूकुमार की माता व पत्नियों की वीर निर्वाण 1 में साध्वी सुव्रता के पास दीक्षा के उल्लेख से यह तो स्पष्ट होता है कि वह महावीरकालीन साध्वी थी, आचार्य सुधर्मस्वामी के समय स्थविरा या प्रवर्तिनी के रूप में सम्माननीया रही। 3.3 महावीरोत्तर युग (वी. नि. 1 से 12वीं शताब्दी)
ई. पू. 527 से महावीरोत्तर युग प्रारम्भ होता है। जिसका काल वी.नि. 21 हजार वर्ष लगभग है, किंतु अनागत अनुपस्थित होने से हम वर्तमान वी.नि. 2531 वर्ष के महावीरोत्तर युग की ही श्रमणियों का अध्ययन कर सकते हैं, प्रस्तुत अध्याय में महावीरोत्तर युग की 12वीं शताब्दी तक की श्रमणियाँ; जिनका संबंध गच्छभेद से पूर्ववर्ती शाखाओं से है, उन्हीं के संबंध में विचार किया गया है। इन श्रमणियों को हमने दो भागों में विभाजित किया है
गण मुक्त - जो किसी भी गच्छ से संबंधित नहीं हैं।
गण कुल या शाखा से अनुबद्ध - ये श्वेताम्बर और यापनीयों की पूर्वज हैं तथा मुख्यतया मथुरा के अभिलेखों में उटैंकित हैं।
3.3.1 गण मुक्त
महावीर के पश्चात् महावीर के शासन की डोर उनके पंचम गणधर सुधर्मा स्वामी ने संभाली, इस समय मगध पर कूणिक का राज्य था। वी.नि. 17 या 18 तक उसके राज्यकाल में कई श्रमणियों के दीक्षा लेने का उल्लेख है। वी. नि. 1 में श्रेष्ठी पुत्र जम्बूकुमार के साथ 17 महिलाएँ दीक्षित हुईं। आर्या पुष्पावती एवं पुष्पचूला का समय भी वी. नि. प्रथम दशक है। अवन्ती में राजा चण्डप्रद्योत के पौत्र राष्ट्रवर्धन की भार्या धारिणी वी.नि. 24 से 60 के लगभग प्रव्रजित हुई थीं। यद्यपि वी. नि. 1 से 64 वर्ष तक मगध में शिशुनागराजवंश, अवंती में प्रद्योत राजवंश, वत्स (कौशाम्बी) में पौरव राजवंश एवं कलिंग में चेदि राजवंश जैनधर्म के अनन्य भक्त रहे,” अतः स्वाभाविक है कि इन राजवंशों की महिलाओं एवं अन्य श्रेष्ठी, सामन्त कुल की स्त्रियों ने भी प्रव्रज्या ग्रहण की होगी, किंतु प्रामाणिक सामग्री के अभाव में निश्चित् कुछ नहीं कहा जा सकता। तथापि वी. नि. की प्रथम शताब्दी से सातवीं शताब्दी तक चतुर्दश या दस पूर्वधर आचार्यों के काल में भी अनेकानेक श्रमणियाँ प्रव्रजित होती रहीं, यह निम्न तालिका से स्पष्ट ज्ञात होता है- (देखें तालिका) तालिका - महावीर निर्वाण की प्रथम से सातवीं शताब्दी तक की श्रमणियाँ वीर निर्वाण शताब्दी
श्रमणियाँ प्रथम
भद्रा आदि 17 महिलाएँ, पुष्पवती, पुष्पचूला, धारिणी, विनयमती, विगतभया आदि। द्वितीय
आर्य स्थूलिभद्र की 7 बहिनें-आर्या यक्षा, यक्षदत्ता आदि
आर्य सुहस्ती के पास अवन्तीसुकुमाल की माता भद्रा एवं 31 पत्नियाँ चतुर्थ
आर्य सुस्थित के समय पोइणी आदि 300 आर्याएँ 36. जै. मौ. इति., भाग 2, पृ. 223 37. जै.मौ.इ. भाग 2 पृ. 248-50
तृतीय
180
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org