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प्रागैतिहासिक काल से अर्हत् पार्श्व के काल तक निर्ग्रन्थ-परम्परा की श्रमणियाँ
2.7.34 भुवनसुंदरी
नाइल्ल कुल समुद्रसूरि के शिष्य विजयसिंह सूरि ने शक संवत् 975 में 8944 गाथा प्रमाण 'सिरि भुयण सुंदरी कहा' की रचना की। सती भुवनसुंदरी ने जीवन के विविध उतार-चढ़ावों को पार कर अंत में चंद्र श्री गणिनी के पास दीक्षा अंगीकार की तथा ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। आत्मिक गुणों का उत्कर्ष करते हुए यह एक विशाल श्रमणी - संघ की प्रवर्तिनी भी बनीं। अंत में केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में गई 1 283
2.7.35 भुवनानन्दा
भुवनानन्दा मंत्री बुद्धिसागर और रतिसुंदरी की पुत्री थी, सुखवासीन नगर के राजा रिपुमर्दन की रानी थी। कर्म योग से राजा ने रानी का त्याग कर दिया, भुवनानंदा ने अपने बुद्धि चातुर्य से राजा से प्रच्छन्न वेष में संपर्क कर पुत्र की प्राप्ति की। अंत में मुनि के उपदेश से प्रतिबुद्ध होकर राजा रिपुमर्दन और भुवनानन्दा दोनों ने चारित्र अंगीकार किया और सद्गति प्राप्त की। 284
2.7.36 सती मंजुला
श्रीपुर नगर के युवा श्रेष्ठी श्रीकान्त के साथ उसका विवाह हुआ, विवाह होते ही श्रीकान्त व्यापार हेतु विदेश रवाना हो गया, चार मास बाद एक सिद्धयोगी की मदद से वह अपनी पत्नी से मिला। मंजुला को गर्भ रह गया, इससे सशंकित ननद पद्मा और सास ने मंजुला को घर से बाहर निकाल दिया। गर्भवती मंजुला की करूण कथा यहीं से प्रारंभ होती है, जीवन में समागत भयंकर तूफानों में बहती हुई मंजुला अन्त तक अपना तेज बनाये रखती है और एक खिलाड़ी की तरह संकटों से जीवन भर खेलती जाती है । अन्त में मंजुला एवं श्रीकांत संयम अंगीकार करते हैं, पद्मा और उसकी माँ भी दीक्षा ले लेती है। पंडित मरण से मरकर ये सभी स्वर्गलोक में देव बने | 285
2.7.37 मदनमंजरी
कौशाम्बी के राजा युगबाहु की रूप- गुण सम्पन्न कन्या और साकेतराज वसुतेज की रानी थी। वसुतेज के सिर पर एक श्वेत बाल को 'धर्मदूत' बताकर उन्हें संयम की ओर अग्रसर किया, दोनों ने आचार्य अमरतेज के पास दीक्षा ली और देवगति प्राप्त की। 286
2.7.38 मदनमंजरी कुसुममंजरी, पुष्पमंजरी, काममंजरी, रूपमंजरी
ये विजयपुर नगर के श्रेष्ठी पुत्र जिनचंद्र कुमार की पत्नियां थीं। विदेश यात्रा के समय जहाज के स्वामी व्यापारी
283. एक्कारसंग सुत्तत्थधारिणी, भुयणसुंदरी गणिणी ।
साहुणिसंघे जाया पवित्तिणी गुणगणग्घविया । । - श्री विजयसिंहसूरि, भुयणसुंदरी कहा, गा. 8926, पाटण, ई. 2000 284. जैन कथाएं भाग 65
285. लोककथा (गुजराती/राजस्थानी ); दृ. जैन कथाएं, भाग 32
286. सुमतिनाथ चरित्र; जैन कथारत्नकोष भाग 6 बालावबोध गौतमकुलक से उद्धृत जैन-कथाएं भाग 78
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