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प्रागैतिहासिक काल से अर्हत् पार्श्व के काल तक निर्ग्रन्थ-परम्परा की श्रमणियाँ
समीक्षा
इन दोसौ सोलह वृद्ध कुमारिकाओं के आख्यानों से उस समय की सामाजिक स्थिति का दिग्दर्शन होता है सामाजिक रूढ़ियों अथवा अन्य किन्हीं कारणों से उस समय समृद्ध परिवारों को भी अपनी कन्याओं के लिए योग्य वरों का मिलना बड़ा दूभर था। भगवान् पार्श्वनाथ ने जीवन से निराश ऐसे परिवारों के समक्ष साधना का प्रशस्त मार्ग प्रस्तुत कर तत्कालीन समाज को बड़ी राहत प्रदान की । ऐतिहासिक दृष्टि से इन सभी साध्वियों का अत्यधिक महत्त्व है। 2.4 भगवान पार्श्व की परवर्ती जैन श्रमणियाँ (पार्श्व निर्वाण संवत् 1 से 250 वर्ष)
भगवान पार्श्वनाथ से महावीर के शासन का अंतराल 250 वर्ष का माना गया है, यह अन्तराल दोनों तीर्थंकरों के तीर्थ स्थापना से तीर्थ-स्थापना का है अथवा निर्वाण से जन्म तक का या निर्वाण से तीर्थ-स्थापना तक का, या निर्वाण से निर्वाण तक का है; यह शोध का विषय है। आवश्यक नियुक्ति में 'पास जिणाओ " 33 पाठ से पार्श्व निर्वाण से महावीर जन्म का अंतराल 250 वर्ष है। अन्यत्र पार्श्वनाथ के निर्वाण से महावीर निर्वाण का उक्त समय वर्णित है । 1 34 मध्यावधि में भगवान पार्श्वनाथ परम्परा के आर्य शुभदत्त (पार्श्व नि. 1-24 ) आर्य हरिदत्त (पा. नि. सं. 24-94) आर्य समुद्रसूरि (पा. नि. सं. 94-166 ), आर्य केशी श्रमण (पा. नि. सं. 166-250 ) आदि आचार्यों के शासनकाल में हजारों श्रमण - श्रमणियों के भारत - वसुधा पर विचरण करने के उल्लेख हैं। 135, उनमें से कुछ उपलब्ध श्रमणियों का वर्णन हम यहाँ कर रहे हैं।
2.4.1 सुव्रता
प्रवर्तिनी पुष्पचूला के पश्चात् अग्रणी साध्वियों में सुव्रता का उल्लेख आता हैं ये गुप्त, ब्रह्मचारिणी, बहुश्रुता एवं अनेक शिष्याओं का नेतृत्व करने वाली प्रभावसंपन्ना साध्वी थीं। इन्होंने वाराणसी के भद्रा सार्थवाह की वन्ध्या भार्या सुभद्रा को धर्म की ओर अग्रसर कर उसे श्रमणी - जीवन की शिक्षा-दीक्षा दी थी। सुभद्रा की दीक्षा में श्री पार्श्वनाथ या श्रमणी पुष्पचूला का उल्लेख नहीं है, इससे यह ज्ञात होता है कि आर्या सुव्रता श्री पार्श्वनाथ की परवर्ती श्रमणी - प्रमुखा रही होंगी। 36
2.4.2 सुभद्रा
वाराणसी के भद्र सार्थवाह की भार्या सुभद्रा अपने वन्ध्यत्व के कारण सदा खिन्न व उदासीन रहती थी एकबार अपने घर पर भिक्षाचर्या निमित्त आई हुई सुव्रता आर्या की शिष्याओं से उसने संतान प्राप्ति का उपाय पूछा, आर्याओं ने उसकी लौकिक कामनाओं को लोकोत्तर मार्ग की ओर मोड़ा और उसे निर्ग्रन्थ-धर्म का उपदेश दिया। साध्वियों के सदुपदेश से उसके अन्तर्मन में धर्म की ज्योति प्रज्वलित हुई और उसने सुव्रता आर्या के पास दीक्षा अंगीकार की । साध्वी बनने के बाद भी उसकी संततिलिप्सा शांत नहीं हुई। वह बच्चों के साथ विभिन्न क्रीड़ाएं कर पुत्र-पुत्री या पौत्र-पौत्री 133. आव. नि. (मलय) पृ. 241 गाथा 17
134. जै. मौ. इ. भाग 1 पृ. 835
135. वही भाग 1 पृ. 528
136. पुष्पिका अध्ययन 4
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