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और इनमें उपलब्ध तथ्यों की जैन परम्परा से तुलना की गई है।
. इसके अतिरिक्त आज मनोविज्ञान के क्षेत्र में भी मानसिक विक्षोभों व तनावों के कारणों की खोज और उनसे मुक्ति के उपायों की चर्चा विस्तार से मिलती है । प्रस्तुत शोध में हमने उन मनोवैज्ञानिक तथ्यों पर भी विचार किया है जिनके कारण व्यक्ति के जीवन में विक्षोभ और तनाव उत्पन्न होते हैं । साथ ही जैन साधना पद्धति में इन विक्षोभों और तनावों से मुक्ति के जो उपाय बताये गए हैं, उनकी मनोवैज्ञानिक दृष्टि से कितनी सार्थकता है, इसकी भी चर्चा की गई है ।
इस प्रकार प्रस्तुत शोधकार्य की उपयोगिता और आवश्यकता को हमने रेखांकित करने का प्रयास किया है। हम अपने प्रयत्न में कितने सफल हुए हैं, यह निर्णय करने का अधिकार तो विद्वज्जनों का है । हम अपनी सीमित योग्यता और क्षमता से जो भी कर सके हैं, उसे इस शोध प्रबन्ध में प्रस्तुत किया है । इस प्रस्तुतीकरण में हमें जिन-जिन महानुभावों का सहयोग मिला है, उनके प्रति आभार व्यक्त करना मैं अपना कर्तव्य समझती हूँ ।
कृतज्ञता ज्ञापन
मैं प्रस्तुत कृति की पूर्णाहुति के क्षणों में कृपालु परमात्मा के चरणों में प्रणत भाव से भावभीनी वन्दना समर्पित किये बिना नहीं रह सकती ।
मैं इस मंगलवेला में परमोपकारी लाखों जैन निर्माता चारों दादागुरुदेव के चरणारविन्दों में अहोभावपूर्वक वन्दन करती हूँ ।
मेरी असीम आस्था के महोदधि सदैव स्नेहवात्सल्य के पयोदधि मानवता के मसीहा, दीक्षा प्रदाता प.पू. आचार्य श्री जिन कान्तिसागरसूरिश्वरजी के पावन चरणों में शत-शत वन्दन करती हूँ । आपश्री के दिव्याशीर्वाद के आलोक में प्रस्तुत शोध प्रबन्ध का कार्य व्यवस्थित एवं निर्विघ्न सम्पन्न हुआ है ।
मैं ऐसा मानती हूँ कि महाप्रज्ञावन्त साहित्यमनीषी मेरे जीवन के पथ प्रदर्शक, अनन्त श्रद्धा के केन्द्र उपाध्याय प्रवर प. पू. गुरुदेव श्री मणिप्रभसागरजी म.सा. की असीम अनुकम्पा से ही प्रस्तुत
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