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जैनदर्शन में समत्वयोग की साधना
११. निद्रा : सामायिक में नींद के झटके खाना या सो जाना निद्रा
दोष है। १२. वैयावृत्य : सामायिक में शरीर की सेवा सुश्रुषा करवाना, यह
वैयावृत्य दोष है। कहीं वैयावच्च के विकल्प में वस्त्र संकोचन दोष भी मानते हैं अर्थात् सर्दी और गर्मी के कारण या निष्प्रयोजन वस्त्रों को समेटना या प्रसारित करना। कुछ आचार्यों ने इसे कम्पन दोष भी माना है। शीत आदि के
कारण शरीर आदि का काँपना कम्पन दोष है। मन, वचन और काया - इन तीनों को स्थिर करने का साधन, साधक के लिये सामायिक है। इसकी साधना करने वालों को इन ३२ दोषों के प्रति पूर्णतया सावधानी बरतनी चाहिये।
३.६ सामायिक की साधना के विविध प्रकार __ जैनदर्शन के अनुसार समत्वयोग की साधना को यदि अति संक्षेप में कहना हो, तो वह सामायिक की साधना है। जैनदर्शन में त्रिविधि साधनामार्ग के रूप में जो सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र की चर्चा हुई है, वह सामायिक की साधना से भिन्न नहीं है। आचार्य हेमचन्द्र ने अपने ग्रन्थ योगशास्त्र तथा उनसे पूर्व जिनभद्रगणि के विशेषावश्यकभाष्य में सामायिक के तीन प्रकार बताये गए हैं।२७ उसमें सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यकुचारित्र का समावेश सामायिक में ही किया गया है। इस प्रकार चाहे हम सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र को साधनामार्ग माने या सामायिक को ही साधनामार्ग माने, दोनों में कोई अन्तर नहीं है। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र के आगे लगा हुआ सम्यक् शब्द ही उनके समभाव या सामायिक से युक्त होने का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रमाण है। जैनदर्शन में चारित्र के पांच प्रकारों का उल्लेख करते हुए भी उनमें सर्वप्रथम स्थान सामायिक चारित्र को दिया गया है। इस प्रकार जैनदर्शन में समत्वयोग की साधना ही वस्तुतः सामायिक की साधना है। क्योंकि समत्व के अभाव में ज्ञान,
१२७ 'सामाइययं च तिविहं, सम्मत्त सुयं तहा चरित्तं च ।
दुविहं चेव चरितं, आगारमणगारियं चेव ।। ७६८ ।।
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