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उपसंहार
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केवल आध्यात्मिक साधना की दृष्टि से और न केवल चैतसिक शान्ति के लिए, अपितु सामाजिक और वैश्विक शान्ति के लिए भी समत्वयोग की साधना आवश्यक है।
जैनदर्शन में समत्वयोग की साधना के लिए सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्-चारित्र रूप मोक्ष मार्ग का प्रतिपादन किया गया है। आधुनिक मनावैज्ञानिकों ने भी चेतना के तीन कार्य माने हैं :
(१) अनुभव करना; (२) जानना; और (३) संकल्प करना।
हमारी अनुभूति, हमारा ज्ञान, हमारा संकल्प और संकल्पजन्य व्यवहार जब तक सम्यक् या समत्व से युक्त नहीं होता, तब तक हमारी चैतसिक और सामाजिक शान्ति की स्थापना सम्भव नहीं है। डॉ. सागरमल जैन का कथन है कि सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्-चारित्र की साधना वस्तुतः समत्वयोग की साधना है और उसके माध्यम से ही पारिवारिक स्तर से लेकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक शान्ति की स्थापना की जा सकती है। वे लिखते हैं कि "चेतना के ज्ञान, भाव और संकल्प के पक्षों को समत्व से युक्त बनाने के हेतु जैनदर्शन में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्-चारित्र रूप मोक्षमार्ग की स्थापना की गई है।"३ __ प्रस्तुत शोध प्रबन्ध के द्वितीय अध्याय में हमने यही बताने का प्रयत्न किया है कि सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्-चारित्र समत्वयोग की साधना के आधार हैं। वस्तुतः जीवन में जब तक सम्यग्ज्ञान रूपी आत्म-अनात्म का विवेक-ज्ञान जागृत नहीं होता; स्व-पर का बोध नहीं होता; तब तक चित्त अशान्त रहता है। अशान्त चित्त में सम्यग्दर्शन का प्रकटन नहीं होता है। सम्यग्दर्शन वीतरागता या आत्मा के समत्व-स्वरूप के प्रति अनन्य निष्ठा है। सम्यक्-चारित्र भी वस्तुतः समत्व को जीवन में जीने का एक प्रयास है। प्रस्तुत शोध प्रबन्ध के द्वितीय अध्ययन में हमने इसी तथ्य को स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि जैनदर्शन क. त्रिविध साधना मार्ग वस्तुतः समत्वयोग की साधना ही है।
३ 'जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन' भाग २ पृ. १८ ।
-डॉ. सागरमल जैन ।
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