Book Title: Jain Darshan me Samatvayog
Author(s): Priyvandanashreeji
Publisher: Prem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP

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Page 421
________________ जैनदर्शन में समत्वयोग की साधना मानसिक विक्षोभों एवं तनावों का प्रमुख कारण माना गया है । आकांक्षा का यह उच्च स्तर तृष्णा, आसक्ति और रागात्मक वृत्ति का ही एक रूप है । यह सत्य है कि आधुनिक मनोविज्ञान विक्षोभ एवं तनावों के कारणों के विश्लेषण के रूप में बाह्य तथ्यों अर्थात् कारकों पर गम्भीरतापूर्वक विचार करता है । इसकी चर्चा हमने प्रस्तुत अध्याय में की है; किन्तु यदि हम मूलभूत कारण के रूप में देखें तो आधुनिक मनोविज्ञान और समग्र भारतीय चिन्तन इस बात में एकमत हैं कि विक्षोभों और तनावों के मूल में कहीं न कहीं इच्छाओं, आकांक्षाओं और राग-द्वेष के तथ्य निहित हैं। साथ ही इस पर भी विचार किया गया है कि विक्षोभों और तनावों से निश्रित द्वन्द्व क्या है? वे कितने प्रकार के हैं और वे क्यों उत्पन्न होते हैं? उनके निराकरण के उपाय क्या हैं? यह समस्त चर्चा विस्तारपूर्वक इस शोध प्रबन्ध के षष्ठम अध्याय में की गई है। वर्तमान में वैयक्तिक और सामाजिक स्तर पर समत्वयोग की साधना ही एक मात्र ऐसा विकल्प है जिसके माध्यम से हम विक्षोभों और तनावों से ऊपर उठकर वैयक्तिक और सामाजिक जीवन में शान्ति की स्थापना कर सकते हैं । ३६८ Jain Education International ।। सप्तम अध्याय समाप्त || For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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