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समत्वयोग : साधक, साध्य और साधना
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काया के बारह दोष इस प्रकार हैं :
'कुआसणं चलासणं चला दिट्ठी, सावज्जकिरिया लंबण कुंचण पसारण। आलस मोडन मल विमासणं,
निद्रा वेयावच्चति बारस काय दोसा।।१२६ १. कुआसन, २. चलासन;
३. चलदृष्टि; ४. सावधक्रिया; ५. आलम्बन;
६. आकुंचन-प्रसारण; ७. आलस्य; ८. मोड़न;
६. मल; १०. विमासण; ११. निद्रा; और १२. वैयावृत्य। १. कुआसन : सामायिक में पैर पर पैर चढ़ाकर अयोग्य रूप से
अभिमान एवं अविनयपूर्वक गुरू के समक्ष बैठना कुआसन दोष है। २. चलासन (अस्थिरासन) : सामायिक में अस्थिर और झूलते
आसन पर बैठना अथवा बैठने की जगह बार-बार बदलना
चलासन दोष है। ३. चलदृष्टि : दृष्टि स्थिर न रखकर चंचल रखना, बार-बार
इधर-उधर दृष्टि करना चल दृष्टि दोष है। ४. सावधक्रिया : सामायिक में बैठकर पापयुक्त क्रिया स्वयं करना ___अथवा संकेतपूर्वक दूसरों से कराना सावध क्रिया दोष है। ५. आलम्बन : बिना किसी रोगादि के कारण दीवार या अन्य
चीजों का सहारा लेना प्रमाद, आलस्य और अविनय का सूचन
है। यह आलम्बन दोष है। ६. आकुंचनप्रसारण : निष्प्रयोजन हाथ-पैरों को सिकोड़ना, लम्बे
करना आकुंचन प्रसारण दोष है। ७. आलस्य : सामायिक में आलस्य करना या गहराई से अंगड़ाई
लेना आलस्य दोष है। ८. मोड़न : सामायिक में बैठकर हाथ-पैर व अन्य अवयव को
दबाकर आवाज करना मोड़न दोष है। ६. मल : शरीर का मैल निकालना मल दोष है। १०. विमासण : गाल पर हाथ रखकर शोकग्रस्त बैठना, इधर-उधर
जाना आना, चिन्ता करना विमासण दोष है।
१२६ उद्धृत सामायिकसूत्र पृ. ६३ ।
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